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________________ १२४] तिलोयपण्णत्ती [४. २२०७ वच्छा सुवच्छा महावच्छा तुरिमा वच्छगावदी। रम्मा सुरम्मगा वि य रमणिज्जा मंगलावदी ॥ २२०७ पम्मा सुपम्मा महापम्मा तुरिमा पम्मगावदी । संखा णलिणा णामा कुमुदा सरिदा तहा ॥ २२१८ वप्पा सुवप्पा महावप्पा तुरिमा वप्पगावदी। गंधा सुगंधणामा गंधिला गंधमालिणी ॥ २२०९ णामेण चित्तकूडो पढमो बिदिभो हवे णलिणकूडो । तदिओ वि पउमकूडो चउत्थओ एकसेलो य ॥ २२१० पंचमओ वि तिकूडो छट्ठो वेसमणकूडणामो य । सत्तमओ तह अंजणसेलो आदजण त्ति अट्ठमओ ॥ २२११ एदे गयदंतगिरी पुग्वविदेहम्मि अट्ट चेटुंते । सब्वे पदाहिणेणं उववणपोक्खरणिरमणिज्जा ॥ २२१२ सड्ढावदिविजावदिआसीविसया सुहावहो तुरिमो । चंदगिरिसूरपव्वदणागगिरी देवमालो त्ति ॥ २२१३ एदे अवरविदेहे वारणदंताचला ठिदा अट्ट । सम्वे पदाहिणेणं उववणवेदीपहुदिजुत्ता ॥ २२१४ दहंगहपंकवदीओ तत्तजला पंचमी य मत्तजला । उम्मत्तजला छट्ठी पुब्वविदेहे विभंगणई ॥ २२१५ खीरोदो सीदोदा भोसहवाहिणिगभीरमालिणिया। फेणुम्मिमालिणीओ अवरविदेहे विभंगसरियाओ ॥ २२१६ दोरिण सहस्सा दुसया बारसजुत्ता सगंस अट्ठहिदा । पुब्वावरेण रुंदो एकेके होदि विजयम्मि ॥ २२१७ २२१२। ७। लावती; वत्सा, सुवैत्सा, महावैत्सा, चतुर्थ वसकावती, रभ्या, सुरम्यका, रमणीया, मंगलावती; पद्मा. सुपा, महापा, चतुर्थ पकावती, शंखा, नलिनी, कुमुदा, सरित् ; वप्रा, सुवा, महौवप्रा, चतुर्थ वर्गकावती, गंधा, सुगंधा नामक, गन्धिंला और गन्धमालिनी; इसप्रकार क्रमसे ये उन आठ आठ क्षेत्रों के नाम हैं ॥ २२०६-२२०९॥ नामसे प्रथम चित्रकूट, द्वितीय नलिनकूट, तृतीय पद्मकूट, चतुर्थ एकशैल, पांचवां भी त्रिक्ट, छठा वैश्रवणकूट नामक, सातवां अंजनशैल तथा आठवां आत्मांजन, इसप्रकार उपवन और वापिकाओंसे रमणीय ये सब आठ गजदन्तपर्वत पूर्वविदेहमें प्रदक्षिणरूपसे स्थित हैं ॥ २२१०-२२१२ ॥ __ श्रद्धावान्, विजटावान्, आशीविषक, चतुर्थ सुखावह, चन्द्रगिरि, सूर्यपर्वत, नागगिरि और देवमाल, इसप्रकार उपवनवेदीआदिसे संयुक्त ये सब आठ गजदन्तपर्वत प्रदक्षिणरूपसे अपरविदेहमें स्थित हैं ॥ २२१३-२२१४ ॥ द्रहवती, ग्राहवती, पंकवती, तप्तजला, पांचवीं मत्ाजला और छठी उन्मत्तजला, ये छह विभंगनदियां पूर्व विदेहमें हैं ॥ २२१५ ॥ क्षीरोदा, सीतोदा, औषधवाहिनी ( स्रोतोवाहिनी ), गभीरमालिनी, फेनमालिनी और ऊर्मिमालिनी, ये छह विभंगनदियां अपरविदेहमें स्थित हैं ॥ २२१६ ॥ प्रत्येक क्षेत्रका पूर्वापरविस्तार दो हजार दोसौ बारह योजन और आठसे भाजित सात अंशमात्र है ॥ २२१७ ॥ २२१२४ । १द ब आदस्सण त्ति, २ दब संडावदि विजदावदि. ३ द ब एकेको. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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