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-४.२२०६ ]
उत्थो महाधियारो
तसु पाहावे जिदिवासादभूसिदे रम्मे आदरअणादरक्खा णिवसंते वैतरा देवा ॥ २१९७ सम्मा सम्माइट्ठीण वच्छला दोष्णि । सयलं जंबूदीचं भुंजंति एकछत्ती णं ॥ २१९८ पुण्यावर भागेसुं मंदरसेलस्स सोलसंखाई' । विजयाणिं पुव्वावर विदेहणामाणि चेति ॥ २१९९
१६ ।
सीए भए पासेसुं अट्ठ अटू कयसीमा । चउचउवक्खारेहिं विजया तिहिं तिहिं विभंगसरियाहिं ॥ २२०० पुत्रविदेहस्ते जंबूदीवस्स जगदिपासम्मि | सीदाए दोतडेसुं देवारण्णं ठिदं रम्मं ॥ २२०१३
दोदाए दो पासेसुं अट्ठ अट्ट कयसीमा । चउचउवक्खारेहिं विजया तिहिं तिहिं विभंगसरियाहिं ॥ २२०२' अवरविदेहस्ते जंबूदीवस्स जगदिपासम्मि | सीदोदादुतडेसुं भूदारण्णं पि चेद्वेदि ।। २२०३ दोसुं पि विदेसुं वक्स्वारगिरी विभंगसिंधूओ । चेते एक्केकं अंतरिदूणं सहावेणं ॥ २२०४ सीदाउत्तरतडओ पुण्वास्स भद्दसालवेदीदो | णीलस्स दक्खिणंते पदाहिणेणं हवंति ते विजया ॥ २२०५ कच्छा सुकच्छा महाकच्छा तुरिमा कच्छकावती । आवत्ता लंगलावत्ता पोक्खला पोक्खलावदी || २२०६
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उनमें जिनेन्द्रप्रासादसे भूषित और रमणीय प्रधान जम्बूवृक्षके ऊपर आदर एवं अनादर नामक व्यन्तरदेव निवास करते हैं ॥ २१९७ ॥
सम्यग्दर्शन से शुद्ध और सम्यग्दृष्टियों के प्रेमी वे दोनों देव सम्पूर्ण जम्बूद्वीपको एकछत्री सम्राट्के समान भोगते हैं ॥ २१९८ ॥
मन्दरपर्वत के पूर्व-पश्चिम भागों में पूर्व - अपरविदेह नामक सोलह क्षेत्र स्थित हैं ।। २१९९ ।। १६ ।
सीतानदी के दोनों पार्श्वभागों में चार चार वक्षारपर्वत और तीन तीन विभंगनदियों से सीमित आठ आठ क्षेत्र हैं ॥। २२०० ॥
पूर्वविदे के अन्त में जम्बूद्वीपकी जगती के पास सीता के दोनों किनारों पर रमणीय देवारण्य स्थित है || २२०१ ॥
सीतोदा के दोनों पार्श्वभागोंमें, चार चार वक्षारपर्वत और तीन तीन विभंग नदियोंसे सीमित आठ आठ क्षेत्र हैं || २२०२ ॥
अपरविदेहके अन्तमें जम्बूद्वीपकी जगतीके पास सीतोदानदी के दोनों किनारोंपर भूतारण्य भी स्थित हैं ।। २२०३ ॥
दोनों ही विदेहोंमें स्वभाव से एक एकको व्यवहित करके वक्षारगिरि और विभंगनदियां स्थित हैं || २२०४ ॥
वे क्षेत्र सीतानदी के उत्तर किनारेसे भद्रशालवेदी के पूर्व और नीलपर्वतके दक्षिणान्तमें प्रदक्षिणरूपसे स्थित हैं ॥ २२०५ ॥
कच्छा, सुकच्छा, महाकच्छा, चतुर्थ कच्छकवती, आवर्ता, लांगलावर्ता, पुष्कला, पुष्क
१ द ब सोलसंखेय. २ द विजयाणं. ३ एषा गाथा ब-पुस्तके नास्ति ४ एषा गाथा ब-पुस्तके नास्ति
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