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________________ ४००] तिलोयपण्णत्ती [ ४. १९९१ एकत्तीससहस्सा चउस्सया जोयणाउ उणसीदी । णंदणवणस्स परिही बाहिरभागम्मि अदिरित्ता ॥ १९९१ ३१४७९ । भट्टसहस्सा णवसयचउवण्णा जोयणाणि छब्भागा। एक्करसहिदो वासो गंदणवणविरहिदो होदि ॥ १९९२ ८९५४ । ६। अट्ठावीससहस्सा तिसया सोलसजुदा य अट्ठकला । एक्करसहिदा परिही गंदणवणविरहिदो अधिया । १९९३ २८३१६।८। माण मि चारणक्खो णिलया गंधब्वचेत्तणामा य । णंदणवणम्मि मंदरपासे चत्तारि पुवादी ॥ १९९४ विक्खंभायामेहिं गंदणभवणाणि होति दुगुणाणिं । सोमणसपुराहिंतो पुव्वं पि वण्णणजुदाणि ॥ १९९५ सकस्स लोयपाला सोमप्पहुदी वसंति एदेसुं । तेत्तियदेवीहि जुदा बहुविहकीडाउ कुणमाणा ॥ १९९६ बलभदणामकूडो ईसाणदिसाए गंदणवणम्मि । तस्सुच्छेहप्पहुदी सरिसा सोमणसकूडेणं ॥ १९९७ जिणमंदिरकूडाणं वावीपासाददेवदाणं च । णामाई विण्णासो सोहम्मीसाणदिसविभागो य ॥ १९९८ इयपहुदि गंदणवणे सोमणसवणं व होदि णिस्सेसं । णवरि विसेसो एक्को वासप्पमुहाणि दुगुणाणिं ॥ १९९९ नन्दनवनके बाह्य भागमें परिधिका प्रमाण इकतीस हजार चारसौ उन्यासी योजनसे अधिक है ॥ १९९१ ॥ ३१४७९ । नन्दनवनसे रहित मेरुका विस्तार आठ हजार नौसौ चौवन योजन और ग्यारहसे भाजित छह भागप्रमाण है ॥ १९९२ ॥ ८९५४ नन्दनवनसे रहित मेरुकी परिधि अट्ठाईस हजार तीनसौ सोलह योजन और ग्यारहसे भाजित आठ कला नन्दनवनके भीतर सुमेरुके पासमें क्रमसे पूर्वादिक दिशाओंमें मान, चारण, गन्धर्व, और चित्र नामक चार भवन हैं ॥ १९९४ ॥ पूर्वके समान वर्णनसे संयुक्त ये नन्दनभवन विस्तार व लंबाईमें सौमनसवनके भवनोंसे दुगुणे हैं ॥ १९९५ ॥ इन भवनोंमें उतनी देवियोंसे संयुक्त होकर विविध प्रकारकी क्रीडाओंको करनेवाले सौधर्म इन्द्रके सोमादिक लोकपाल निवास करते हैं ॥ १९९६ ॥ नन्दनवनके भीतर ईशानदिशामें बलभद्र नामक कूट है । इस कूटकी उंचाई आदि सौमनससम्बंधी कूटके सदृश है ॥ १९९७॥ जिनमन्दिर, कूट, वापी, प्रासाद व देवताओंके नाम, विन्यास और सौधर्म व ईशानेन्द्रकी दिशाओंका विभाग, इत्यादिक सब नन्दनवनमें सौमनस वनके ही समान है । विशेषता केवल एक यह ह कि उनके विस्तारादिक दुगुणे हैं ॥ १९९८-१९९९ ॥ १ द ब एक्कारसहिद. २ द ब चारणक्खा . ३ द ब लोयपालो.४ द ब देवेहि. ५ द ब कुणमाणो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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