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-४. १९९०]
चउत्थो महाधियारो
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मूलोवरि सो कूडो चउवेदीतोरणेहिं संजुत्तो । उवरिमभाए तस्स य पालादा विविहरयणमया ॥ १९८३ मंदिरसेलाहिवई' बलभद्दो णाम वेतरो देवो । अच्छदि तेसु पुरेसं बहुपरिवारहि संजुत्तो ॥ १९८४ ।। तिणि सहस्सा दुसया बाहत्तरि जोयणाणि अट्ठकला । एक्करसहिदा वासो सोमणसभंतरे होदि ॥ १९८५
३२७२ । ८ ।
दस य सहस्सा तिसया उणवण्णा जोयणाणि बेयंसा । एक्करसहिदाँ परिही सोमणसभतरे भागे ॥ १९८६
१०३४९।२।
११ एवं संखेवेणं सोमणसं वरवणं मए भणिदं । वित्थारवण्णणासुं तस्स ण सक्केदि सक्को वि॥ १९८७ पंचसएहिं जुत्ता बासट्ठिसहस्सजोयणा गंतुं । सोमणलादो हेटे होदि वणं णंदणं णाम ॥ १९८८
६२५००। पणसयजोयणरुंदं चामीयरवेदियाहिं परियरियं । चउतोरणदारजुदं खुल्लयदारेहि गंदणं णाम ॥ १९८९
णव य सहस्सा णवसयचउवण्णा जोयणाइ छब्भागा। एक्करसेहि हिदा ण णंदणबाहिरए होदि विक्खंभो॥१९९०
९९५४ । ६।
वह कूट मूलमें व ऊपर चार वेदीतोरणोंसे संयुक्त है । उसके उपरिम भागपर विविध रत्नमय प्रासाद हैं ॥ १९८३ ।।
मन्दिर और शैलका अधिपति बलभद्र नामक व्यन्तरदेव उन पुरोंमें बहुत परिवारसे संयुक्त होकर रहता है ॥ १९८४ ॥
____ सौमनसवनके अभ्यन्तर भागमें तीन हजार दोसौ बहत्तर योजन और ग्यारहसे भाजित आठ कलामात्र विस्तार है ॥ १९८५ ॥ ३२७२४ ।
सौमनसवनके अभ्यन्तर भागमें परिधिका प्रमाण दश हजार तीनसौ उनचास योजन और ग्यारहसे भाजित दो भागमात्र है ।। १९८६ ॥ १०३४९२ ।।
- इसप्रकार मैंने संक्षेप में सौमनस नामक उत्तम वनका वर्णन किया है । उसका विस्तारपूर्वक वर्णन करनेके लिये तो इन्द्र भी समर्थ नहीं है ॥ १९८७ ॥
बासठ हजार पांचसौ योजनप्रमाण सौमनसवनके नीचे जाकर नन्दन नामक वन है ॥ १९८८ ॥ ६२५०० ।
यह नन्दनवन पांचसौ योजनप्रमाण विस्तारसे सहित, सुवर्णमय वेदिकाओंसे वेष्टित तथा क्षुद्रद्वारोंके साथ चार तोरणद्वारोंसे संयुक्त है ॥ १९८९ ॥ ५०० ।
नन्दनवनके बाह्य भागमें नौ हजार नौसौ चौवन योजन और ग्यारहसे भाजित छह भागमात्र विस्तार है ॥ १९९० ॥ ९९५४६।.
१द ब "हिवही.२ दब अच्छहि. ३ दबवासा. ४ दब एक्कारसहिद.५द सक्काओ, ब सक्काऊ. . ६ द ब परियरिया. ७ द ब एक्करसेहिदा..
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