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तिलोयपण्णत्ती
[ ४. १९७५
वासो पणघणकोसा तहगुणा मंदिराण उच्छेहो । लोयविणिच्छयकत्ता एवं माणे णिरूवेदि ॥ १९७५ १२५ । २५० ।
[पाठान्तरम् ) कूडेसुं देवीओ कण्णकुमारीओ दिव्वरूवाओ । मेघंकरमेघवदी सुमेघया मेघमालिणी तुरिमा ॥ १९७६ तोअंधरा विचित्ता पुप्फयमालो यार्णदिदा चरिमा । पुवादिसु कूडेसु कमेण चेति एदाओ ॥ १९७७ बलभद्दणामकूडो ईसाणादिसाए तब्वणे होदि । जोयणसयमुत्तुंगो मूलम्मि व तत्तिओ वासो ॥ १९७८
१००।१०। पण्णासजोयणाई सिहरे कूडस्स वासवित्थारो। मुहभूमीमिलिदद्धं मज्झिमविस्थारंपरिमाणं ॥ १९७९ एस बलभद्दकूडो सहस्सजोयणपमाणउच्छेहो । तेत्तियरुंदपमाणो दिणयरबिंब व समवहो ॥ १९८०
१०००।१०००। सोमणसस्स य वासं णिस्सेसं रुभिदूण सो सेलो । पंचसयजोयणाई तत्तो रुंभेदि याकासं ॥ १९८१ दसविंदं भूवासो पंचसया जोयणाणि मुहवासो । एवं लोयविणिच्छयमग्गायणिएमुदीरेदि ॥ १९८२ १०००। ५०० ।
पाठान्तरम् ।
मन्दिरोंका विस्तार पांचके धन अर्थात् एकसौ पच्चीस कोसप्रमाण और उंचाई इससे दुगुणी है । इसप्रकार लोकविनिश्चयके कर्ता इनके प्रमाणका निरूपण करते हैं ॥ १९७५ ।। ___ व्यास १२५ । उत्सेध २५० ।
[पाठान्तर । - पूर्वादिक कूटोंपर क्रमसे मेघंकरा, मेघवती, सुमेघा, चतुर्थ मेघमालिनी, तोयंधरा, विचित्रा, पुष्पमाला और अन्तिम अनिन्दिता, इसप्रकार ये दिव्य रूपवाली कन्याकुमारी देवियां स्थित हैं ॥ १९७६-१९७७ ॥
सौमनसवनके भीतर ईशानदिशामें एकसौ योजनप्रमाण ऊंचा और मूलमें इतने ही विस्तारवाला बलभद्र नामक कूट है ॥ १९७८ ॥ उत्सेध १०० । व्यास १००।।
___ उस कूटका विस्तार शिखरपर पचास योजन और मध्यमें मुख एवं भूमिके सम्मिलित विस्तारप्रमाणसे आधा है ॥ १९७९ ।।
यह बलभद्रकूट हजार योजनप्रमाण ऊंचा और इतने ही विस्तारप्रमाणसे सहित होता हुआ सूर्यमण्डलके समान समवृत्त है ॥ १९८० ॥ उत्सेध १००० । विस्तार १००० ।
___ वह शैल सौमनसवनके सम्पूर्ण विस्तारको रोककर पुनः पांचसौ योजनप्रमाण आकाशको रोकता है ॥ १९८१ ॥
उसका भूविस्तार दशके घनरूप अर्थात् एक हजार योजन और मुखविस्तार पांचसौ योजनप्रमाण है । इसप्रकार लोकविनिश्चय व मग्गायणीमें कहते हैं ॥ १९८२ ॥
१००० । ५००।
पाठान्तर।
१ दब मंदराण. २ दब.पुष्फयमाली. .३.द ब वित्थारस्स..
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