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________________ -१. १९७४ ] चउत्थो महाधियारो [३९७ ... तास पासादवरे ईसाणिदो सुहेण कीडेदि । सब्बा विवण्णणां वि हु सोहम्मस्सेव वत्तव्वा ॥ १९६७ सोमणसम्भंतरए पुब्बादिचउदिसासु चत्तारो। पुव्वं व सयलवण्णणवित्थारो तेसु णादब्वो ॥ १९६८ पत्तेकं जिणमंदिरसालाण बाहिरम्मि चेटुंति । दोपासेसु दोहो कूडा णामा वि ताण इमे ॥ १९६९ गंदणणामा मंदरणिसहहिमा रजदरुजगणामा य । सायरचित्ता वजो पुवादिकमेण अक्खादा ॥ १९७० पणवीसब्भहियसयं वासो सिहरम्मि दुगुणिदो मूले । मूलसमो उच्छेहो पत्तेकं ताण कूडाणं ॥ १९७१ १२५ । २५० । २५०। कूडाणं मूलोवरिभागेसु वेदियाओ दिवाओ। वररयणविरइदाओ पुव्वं पिव वण्णणजुदाओ॥ १९७२. कूडाण उवरिभागे चउवेदीतोरणेहि रमणिज्जा । णाणाविहपासादा चेटुंते णिरुवमायारा ॥ १९७३ . पण्णरससया दंडा उदो रुंदं पि कोसचउभागो । तद्गुणं दीहत्तं पुह पुह सव्वाण भवणाणं ॥ १९७४ १५०० । को ।। इस उत्तम भवनमें ईशानेन्द्र सुखसे क्रीडा करता है । यहां सब विवर्णन सौधर्मइन्द्रके समान ही कहना चाहिये ॥ १९६७ ॥ सौमनसवनके भीतर पूर्वादिक चारों दिशाओंमें चार [ जिनमन्दिर ] हैं। इनका सम्पूर्ण वर्णनविस्तार पूर्वके ही समान जानना चाहिये ॥ १९६८ ॥ प्रत्येक जिनमंदिरसम्बन्धी कोटोंके बाहिर दोनों पार्श्वभागों में जो दो दो कूट स्थित हैं उनके नाम ये हैं-नन्दन, मन्दर, निषद, हिमवान , रजत, रुचक, सागरचित्र और वज्र । ये कूट पूर्वादिक्रमसे कहे गये हैं ॥ १९६९-१९७० ॥ ___ उन प्रत्येक कूटोंका विस्तार शिखरपर एकसौ पच्चीस योजन और मूलमें इससे दुगुणा है । मूलविस्तारके समान ही उंचाई भी दोसौ पचास योजनप्रमाण है ॥ १९७१ ॥ शिखरव्यास १२५ । मूलव्यास २५० । उत्सेध २५० । कूटोंके मूल व उपरिम भागोंमें उत्तम रत्नोंसे रचित और पूर्वके समान वर्णनसे सहित दिव्य वेदियां हैं ॥ १९७२ ॥ कूटोंके ऊपरिभागमें चार वेदीतोरणोंसे रमणीय अनुपम आकारवाले नाना प्रकारके प्रासाद स्थित हैं ॥ १९७३ ॥ सब भवनोंकी उंचाई पृथक् पृथक् पन्द्रहसौ धनुष, विस्तार एक कोसका चतुर्थ भाग और दीर्घता इससे दुगुणी अर्थात् आध कोसप्रमाण है ॥ १९७४ ॥ ___उत्सेध ध. १५०० । विस्तार को. ३ । दीर्घता ।। १ब सव्वाणि वण्णणा. २द अक्खद्दा. ३दबवासा. ४दब दुगुणिदे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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