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________________ -४. १९०२] चउत्थो महाधियारो [३८९ णियजोगुच्छेहजुदो तप्पुरदो चेदे अधिटाणो'। कोसासीदी वासो तेत्तियमेदस्स दीहत्तं ।। १८९४ तस्स बहमझदेसे सभापुरं दिव्वरयणवररइदं । अधिया सोलस उदओ कोसा चउसट्टि दीहवासाणि ॥ १८९५ १६।६४ । ६४। सीहासणभद्दासणवेत्तासणपहदिविविहपीढाणि । वररयणणिम्मिदाणिं सभापुरे परमरम्माणि ॥ १८९६ होदि सभापुरपुरदो पीढो चालीसकोसउच्छेहो । णाणाविहरयणमओ उच्छण्णो तस्स वासउवएसो ॥ १८९७ ४० को। पीढस्स चउदिसासु बारस वेदीओ होंति भमियले । वरगोउराओ तेत्तियमेत्ताओ पीढउड्डम्मि ॥ १८९८ पीढोवरि बहुमज्झे समवट्टो चे?दे रयणथूहो । वित्थारुच्छेहेहिं कमसो कोसाणि दोहि चउसट्ठी ॥ १८९९ को ६४।६४। तत्तो वि छत्तसहिओ कणयमओ पजलंतमणिकिरणो। थूहो अणाइणिहणो जिणसिद्धपडिमपडिपुण्णो ॥ १९०० तस्स य पुरदो पुरदो अटुत्थूहाँ सरिच्छवासादी । ताणं अग्गे दिव्वं पीढं चेटेदि कणयमयं ॥ १९०१ तं रुंदायामहि दोणि सया जोयणाणि पण्णासा। पीढस्स उदयमाणे' उवएसो अम्ह उच्छण्णो ॥ १९०२ २५० । २५०। । उसके आगे अपने योग्य उंचाईसे युक्त अधिष्ठान स्थित है । इसका विस्तार अस्सी कोस और लंबाई भी इतनी ही है ॥ १८९४ ॥ ८० । ___ उसके बहुमध्यभागमें उत्तम दिव्य रत्नोंसे रचा गया सभापुर है, जिसकी उंचाई सोलह कोससे अधिक और लंबाई व विस्तार चौंसठ कोसप्रमाण है ॥ १८९५ ।। १६ । ६४ । ६४ । सभापुरमें सिंहासन, भद्रासन और वेत्रासनप्रभृति विविध पीठ उत्तम रत्नोंसे निर्मित परमरमणीय हैं ॥ १८९६ ॥ सभापुरके आगे चालीस कोस ऊंचा और नाना प्रकारके रत्नोंसे निर्मित पीठ है । इसके विस्तारका उपदेश नष्ट हो गया है ॥ १८९७ ॥ ४०। पीठके चारों ओर उत्तम गोपुरोंसे युक्त बारह वेदियां पृथिवीतलपर और इतनी ही पीठके ऊपर हैं ॥ १८९८॥ पीठके ऊपर बहुमध्यभागमें समवृत्त रत्नस्तूप स्थित है, जो क्रमसे चौंसठ कोसप्रमाण विस्तार व उंचाईसे सहित है ॥ १८९९ ॥ को. ६४ । ६४ । इसके भी आगे छत्रसे सहित, देदीप्यमान मणिकिरणोंसे विभूषित और जिन व सिद्धप्रतिमाओंसे परिपूर्ण अनादिनिधन सुवर्णमय स्तूप है ॥ १९०० ।। इसके भी आगे समान विस्तारादिसे सहित आठ स्तूप हैं । इन स्तूपोंके आगे सुवर्णमय दिव्य पीठ स्थित है ॥ १९०१ ॥ __इस पीठका विस्तार व लंबाई दोसौ पचास योजनप्रमाण है। इसकी उंचाईके प्रमाणका उपदेश हमारे लिये नष्ट हो गया है ।। १९०२ ॥ २५० । २५० । ० । १ द ब अदिट्ठाणो. २ द ब हाणि. ३ द बत्थूहो तस्सरिच्छ. ४ द रुंदा आयामेहिं. ५ द ब उदयमाणो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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