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तिलोयपण्णत्ती
[५. १७५१
अथवा गिरिवरिसाणं विगुणियवासम्मि भरहइसुमाणे । अवणीदे जे सेसं णियणियबाणाण तं माणं ॥ १७५१ चउणउदिसहस्साणि जोयण छप्पण्णअधियएकसया। दोणि कलामो अधिया णिसहगिरिस्सुत्तरे जीवा॥ १७५२
९४१५६ ।।
एक जोयणलक्खं चउवीससहस्सतिसयछादाला । णवभागा अदिरित्ता णिसहे जीवाए धणुपट्ट॥ १७५३
१२४३४६ । ९।
सयवरगं एक्कसय सत्तावीसं च जोयणाणं पि । दोणि कला णिसहस्स य चूलियमाणं च णादब्वं ॥ १७५४
जो १०१२७ ।।
जोयण वीससहस्सं एकसयं पंचसमधिया छट्ठी। अड्डाइजकलायो पस्सभुजा णिसहसेलस्स ॥ १७५५
२०१६५। ५।
तग्गिरिदोपासेसु उववणसंडाणि होति रमणिज्जा । बहुविहवररुक्खाणिं सुककोकिलमोरजुत्ताणि ॥ १७५६ उववणसंडा सव्वे पव्वददीहत्तसरिसदीहत्ता । वरवावीकूवजुदा पुष्वं विय वण्णणा सव्वा ॥ १७५७
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अथवा, पर्वत और क्षेत्रके दूने विस्तारमेंसे भरतक्षेत्रसम्बन्धी बाणप्रमाणके कम करदेनेपर जितना शेष रहे उतना अपने अपने बाणोंका प्रमाण होता है ॥ १७५१ ॥
३२९००° ४-२ १९९०° = ६३९००० निषधका बाणप्रमाण ।
निषधपर्वतकी उत्तरजीवाका प्रमाण चौरानबै हजार एकसौ छप्पन योजन और दो कला अधिक है ॥ १७५२ ॥ ९४१५६२३ ।
निषधपर्वतकी जीवाके धनुपृष्ठका प्रमाण एक लाख चौबीस हजार तनिसौ छयालीस योजन और नौ भाग अधिक है ॥ १७५३ ॥ १२४३४६१२१ ।
निषधपर्वतकी चूलिकाका प्रमाण सौका वर्ग अर्थात् दश हजार, तथा एकसौ सत्ताईस योजन और दो कलाप्रमाण जानना चाहिये ॥ १७५४ ॥ १०१२७१२ ।
निषधपर्वतकी पार्श्वभुजा बीस हजार एकसौ पैंसठ योजन और अढाई कलाप्रमाण है ॥ १७५५ ॥ २०१६५६ ।
इस पर्वतके दोनों पार्श्वभागोंमें बहुत प्रकारके उत्तम वृक्षोंसे सहित और तोता, कोयल एवं मयूर पक्षियोंसे युक्त रमणीय उपवनखंड है ॥ १७५६॥
वे सब उपवनखंड पर्वतकी लम्बाईके समान लम्बे और उत्तम वापी एवं कूपोंसे संयुक्त हैं । इनका सब वर्णन पहिलेके समानही है ॥ १७५७ ॥
१ द सत्तावीसभहियं,
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