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________________ -४. १७६७ ] चउत्थो महाधियारो [ ३७३ - कूडो सिद्धो' णिसद्दो हरिवस्सो तह विदेहहरिविजया । सीदोदपरविदेहा रुजगो य हवेदि णिसहउवरिम्मि ॥१७५८ ताणं उदयहुदी सब्वे हिमवंतलेलकूडादो । चउगुणिया णवरि इमे कूडोवरि जिणपुरी सरिसा ॥ १७५९ ते कूडाणामा वेंतरा सुरा तेसुं । बहुपरिवारेहिं जुदा पलाऊ दसधणुतंगा ॥। १७६० पउम हाउ चउगुणरुंद पहुदी भवेदि दिव्वदहो । तीगिच्छो विक्खादो बहुमज्झे जिसहसेलस्स || १७६१ "वी २०००, आ ४०००, गा ४०, पउ ४२, संखा ५६०४६४, व १, मु ३, प ४, मज्झि ४, अं ४ वा २ । तद्दह उमस्सोवरि पासादे' चेट्ठदे य धिदिदेवी । बहुपरिवारेहिं जुदा णिरुव मलावण्णसंपूण्णा ॥ १७६२ इगिपलुपमाणाऊ णाणाविहरयणभूसियसरीरा । अहरम्मा वेंतरिया सोहम्मिंदस्स सा देवी ॥। १७६३ जेत्तियमेत्ता तस्सि पउमगिहा तेत्तिया जिनिंदपुरा । भव्वाणानंदयरी सुरकिण्णरमिहुणसंकिण्णा ॥ १७६४ ईसाण दिसामाए वेसमणो णाम मणहरो कूडो । दक्खिणदिसाविभागे कूडो सिरिणिचयणामो य ॥ १७६५ णइरदिदिसाविभागे णिसद्दो णामेण सुंदरो कूडो । भइरावदो त्ति कूडो तीगिच्छीपच्छिमुतविभागे ॥ १७६६ उत्तरदिसाविभागे कूडो सिरिसंचयो त्तिणामेण । एदेहिं कूडेहिं णिसहगिरी पंचसिद्दरि त्ति ।। १७६७ निषधपर्वत के ऊपर सिद्ध, निषध, हरिवर्ष, विदेह, हरि, विजय, सीतोदा, अपरविदेह और कूट स्थित हैं ॥ १७५८ ॥ रुचक, ये नौ इन कूटोंकी उंचाई आदि सब हिमवान्पर्वतके कूटोंसे चौगुणी है । विशेषता केवल यह है कि कूट पर स्थित ये जिनपुर हिमवान्पर्वतसंबंधी जिनपुरोंके सदृश हैं ॥ १७५९ ॥ 1 जिस नामके धारक ये कूट हैं, उसी नामके धारक व्यन्तरदेव उन कूटों पर निवास करते हैं । ये देव बहुत परिवारोंसे युक्त, एक पल्यप्रमाण आयुवाले और दश धनुष ऊंचे हैं । १७६० ॥ निषध पर्वत के बहुमध्यभागमें पद्मद्रहकी अपेक्षा चौगुणे विस्तारादिसे सहित और तिगिछनाम से प्रसिद्ध एक दिव्य तालाब है || १७६१ ॥ व्यास २०००, आयाम ४०००, अवगाह ४०, नालकी उंचाई ४२, संख्या ५६०४६४, बाल्य १, मृणाल ३, पद्म ४, मध्यव्यास ४, अंतव्यास २ वा ४ योजन । उस द्रहसम्बन्धी पद्मके ऊपर स्थित भवन में बहुत परिवारसे संयुक्त और अनुपम लावयसे परिपूर्ण धृति देवी निवास करती है ।। १७६२ ॥ एक पल्यप्रमाण आयुकी धारक और नाना प्रकारके रत्नोंसे भूषित शरीरवाली अतिरमणीय वह व्यन्तरिणी सौधर्मइन्द्रकी देवी है | १७६३ ॥ उस तालाब में जितने पद्मगृह हैं, उतने ही भव्य जनोंको आनन्दित करनेवाले किन्नरदेवों के युगलोंसे संकीर्ण जिनेन्द्रपुर हैं ।। १७६४ ॥ तिगिछ तालाब के ईशान दिशाभागमें मनोहर वैश्रवण नामक कूट, दक्षिणदिशाभागमें श्रीनिचय नामक कूट, नैऋत्यदिशाभागमें सुन्दर निषध नामक कूट, पश्चिमोत्तर कोण में ऐरावतकूट और उत्तरदिशाभागमें श्रीसंचय नामक कूट है । इन कूटोंसे निषधपर्वत ' पंचशिखरी ' इसप्रकार प्रसिद्ध है ।। १७६५-१७६७ ॥ १ द सि. २ द जिणवरा ३ द तीगिच्छे, ब तिंगिन्छे. ४ द ब वा २, अंबु वा २, उ ३, १४, ४. ५ द ब पासादा. ६ द व भवणाणंदयरा. ७ द ब अइरावदा. ८ द ब तिमिच्छीमुत्तर . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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