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३६८] तिलोयपण्णत्ती
[४.१७२१णव य सहस्सा दुसया छाहत्तरि जोयणाणि भागा य । अडतीसहिदुणवीसा महहिमवंतम्मि पस्सभुजा ॥ १७२१
९२७६ । १९ ।
जोयण असहस्सा एकसयं अट्ठवीससंजुत्तं । पंचकलाओ एदं तग्गिरिणो चूलियामाणो ॥ १७२२
८१२८।५।
महाहिमवंते दोसं पासेस वेदिवणाणि रम्माणि । गिरिसमदीहत्ताणि वासादीणं च हिमवगिरि ॥ १७२३ सिद्धमहाहिमवंता हेमवदो रोहिदो य हरिणामो । हरिकंता हरिवरिसो' वेरुलिभो अड इमे कुडा ॥ १७२४ हिमवंतपस्वदस्स य कहादो उदयवासपहुदीणिं । एदाणं कूडाणं दुगुणसरूवाणि सव्वाणि ॥ १७२५ जंणामा ते कूडा तंणामा वेंतरा सुरा होति । अणुवमरूवसरीरा बहुविहपरिवारसंजुत्ता ॥ १७२६ पउमदहाउ दुगुणो वासायामेहि गहिरभावेणं । होदि महाहिमवंते महपउमो णाम दिव्वदहो ॥ १७२७
वा १०००। आ २००० ।गा २० । (तहहपउमस्सोवरि पासादे चेट्टदे य हिरिदेवी । बहुपरिवारहिं जुदा सिरियादेवि व्व वणिजगुणोहा ॥ १७२८
महाहिमवान् पर्वतकी पार्श्वभुजा नौ हजार छयत्तर योजन और अडतीससे भाजित उन्नीसभागमात्र है ।। १७२१ ॥ .
उस पर्वतकी चूलिकाका प्रमाण आठ हजार एकसौ अट्ठाईस योजन और पांच कला है ॥ १७२२ ॥ ८१२८ १३ ।
___ महाहिमवान् पर्वतके दोनों पार्श्वभागोंमें रमणीय वेदी और वन हैं। इनकी लंबाई इसी पर्वतके बराबर और विस्तारादिक हिमवान् पर्वतके समान है ॥ १७२३ ॥
इस पर्वतके ऊपर सिद्ध, महाहिमवान् , हैमवत, रोहित् , हरि, हरिकान्त, हरिवर्ष और वैडूर्य, इसप्रकार ये आठ कूट हैं ॥ १७२४ ॥
हिमवान् पर्वतके कूटोंसे इन कूटोंकी उंचाई और विस्तारप्रभृति सब दुगुणा दुगुणा है ॥ १७२५॥
जिन नामोंके वे कूट हैं, उन्हीं नामवाले व्यन्तरदेव उन कूटोंपर रहते हैं। ये देव अनुपम रूपयुक्त शरीरके धारक और बहुत प्रकारके परिवारसे संयुक्त हैं ॥ १७२६ ॥
महाहिमवान् पर्वतपर स्थित महापद्म नामक द्रह पद्मद्रहकी अपेक्षा दुगुणे विस्तार, लंबाई व गहराईसे सहित है ॥ १७२७ ॥ विस्तार १००० । आयाम २००० । गहराई २० ।
उस तालाबमें कमलके ऊपर स्थित प्रासादमें बहुतसे परिवारसे संयुक्त तथा श्रीदेवीके सदृश वर्णनीय गुणसमूहसे परिपूर्ण ही देवी रहती है ॥ १७२८ ॥
१द अहतीस. २द ब एइं. ३द सव्वमहा'. ४ द हरवरिसो. ५द बयामोहि. ६ द ब महाहिमवंतो.
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