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________________ -४. १७३७ ] चउत्यो महाधियारो [ ३६९ हैणवरि विसेसो एसो दुगुणा परिवारपउम्परिसंखा । जेत्तियमेत्तपसादा जिणभवणा तत्तियो रम्मा ॥ १७२९ हंसाणादसाभाए वेसमंणो णाम सुंदरो कूडो । दक्खिणदिसाविभागे कूडो सिरिणिचयणामो य ॥ १७३० णइरिदिभागे कूडं महहिमवतो विचित्तरयणमओ । पच्छिमउत्तरभागे कृढो एरावदो णाम ॥ १७३१ सिरिसंचयं ति कुडो उत्तरभागे दहस्स चेटेदि । एदेहिं कूडे हिं महहिमवंतो य पंचसिहरो ति ॥ १७३२ एदे सब्वे कूडा वेंतरणयरेहिं परमरमणिज्जा । उववणवेदीजुत्ता उत्तरपासे जलम्मि जिणकूडो ॥ १७३३ सिरिणिचयं वेरुलियं अंकमयं अच्छरीयरुजगाई। उप्पलसिहरी कूडा सलिलम्मि पदाहिणा होंति ॥ १७३४ तहहदक्खिणदारे रोहिणदी णिस्सरेदि विउलजला । दक्षिणमुहेण वञ्चदिपणहदइगिवीसतिसयमदिरित्तं ॥ १७३५ १६०५। ५। रोहीए रुंदादी सारिच्छा होति रोहिदासाए । णाभिप्पदाहिणणं हेमवदे जादि पुब्वमुहा ॥ १७३६ तक्खिदिबहुमजोणं गच्छिर्य दीवस्स जगदिबिलदारे । पविसेदि लवणजलधि अडवीससहस्सवाहिणीसहिदा ॥ १७३७ २८०००। । महहिमवंतो गदो। यहां विशेषता केवल यह है कि ह्री देवीके परिवार और पोंकी संख्या श्रीदेवीकी अपेक्षा दूनी है। इस तालाबमें जितने प्रासाद हैं उतने ही रमणीय जिनभवन भी हैं ॥ १७२९ ॥ इस तालाबके ईशान दिशाभागमें सुन्दर वैश्रवण नामक कूट, दक्षिणदिशाभागमें श्रीनिचय नामक कूट, नैऋत्यदिशाभागमें विचित्र रत्नोंसे निर्मित महाहिमवान् कूट, पश्चिमोत्तरभागमें ऐरावत नामक कूट और उत्तरभागमें श्रीसंचय नामक कूट स्थित है। इन कूटोंसे महाहिमवान् पर्वत पंचशिखर कहलाता है ॥ १७३०-१७३२ ।। ये सब कूट व्यन्तरनगरोंसे परमरमणीय और उपवनवेदियोंसे संयुक्त हैं । तालाबके उत्तरपार्श्वभागमें जलमें जिनकूट है ।। १७३३ ॥ श्रीनिचय, वैडूर्य, अंकमय, आश्चर्य, रुचक, उत्पल और शिखरी, ये कूट जलमें प्रदक्षिणरूपसे स्थित हैं ।। १७३४ ॥ इस तालाबके दक्षिण द्वारसे प्रचुरजलसंयुक्त रोहित् नदी निकलती है और पर्वतपर पांचसे गुणित तीनसौ इक्कीस योजनसे अधिक दक्षिणकी ओर जाती है ।। १७३५ ॥ ३२१ x ५ = १६०५६५ । रोहित् नदीका विस्तार आदि रोहितास्याके समान है। यह नदी हैमवतक्षेत्रमें नाभिगिरिकी प्रदक्षिणा करती हुई पूर्वाभिमुख होकर आगे जाती है ॥ १७३६ ॥ ___ इसप्रकार यह नदी उस हैमवतक्षेत्रके बहुमध्यभागसे द्वीपकी वेदीके बिलद्वारमें जाकर अट्टाईस हजार नदियों सहित लवणसमुद्रमें प्रवेश करती है ॥ १७३७ ॥ २८००० । ___ महाहिमवान् पर्वतका वर्णन समाप्त हुआ। १ द ब 'पदेसा. २ द व तत्ति भू. ३ द ब सिरिसंवदं. ४ द ब गच्छय. ५ द ब महहिमपंत. TP. 47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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