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-१. १७२०]
चउत्थो महाधियारो
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बे कोसे वियपाविय अचलं तं वलिय पच्छिमाहिमहा । उत्तरमहेण तत्तो कुडिलसरूवेण एत्ति सा सैरिया॥१७१४ गिरिबहुमज्झपदेसं णियमज्झपदेसयं च कादूर्ण । पच्छिममुहेण गच्छइ परिवारणदीहिं परियरिया ॥ १७१५ अट्ठावीससहस्सा परिवारणदीण होदि परिमाणं । दीवस्स य जगदिबिलं पविसिय पविसेदिलवणवारिणिहि ॥१७१६
२८०००।
हेमवदो गदो । भरहावणिरुंदादो अडगुणरुंदो य दुसय उच्छेहो । होदि महाहिमवंतो हिमवंतवियं वणेहि कयसोहो ॥ १७१७
८०००० । उ २०० ।
पण्णसर्यसहस्साणिं उणवीसहिदाणि जोयणाणि पि । भरहाउ उत्तरंतं तग्गिरिबाणस्स परिमाणं ॥ १७१८
[१५००००।]
तेवण्णसहस्साणिं णवसया एकतीससंजुत्ता। छ श्चिय कलाओ जीवा उत्तरभागम्मि तगिरिणी ॥ १७१९
५३९३१ ।६।
सत्तावण्णसहस्सा दुसया तेणउदि दस कलाओ य । तत्थ महाहिमवंते जीवाए होदि धणुपटुं॥ १७२०
५७२९३ । १०॥
वह नदी दो कोससे पर्वतको न पाकर अर्थात् पर्वतसे दो कोस पूर्व ही रहकर पश्चिमाभिमुख हो जाती है। इसके पश्चात् फिर उत्तराभिमुख होकर कुटिलरूपसे आगे जाती है, और पर्वतके बहुमध्य प्रदेशको अपना मध्यप्रदेश करके परिवारनदियोंसे युक्त होती हुई पश्चिमकी ओर चली जाती है ॥ १७१४ -१७१५॥
इसकी परिवारनदियोंका प्रमाण अट्ठाईस हजार है। इसप्रकार यह नदी जम्बूद्वीपकी जगतीके बिलमें होकर लवणसमुद्रमें प्रवेश करती है ।। १७१६ ॥ २८००० ।
___ हैमवतक्षेत्रका वर्णन समाप्त हुआ । महाहिमवान् पर्वतका विस्तार भरतक्षेत्रसे अठगुणा और उंचाई दोसौ योजनप्रमाण है व हिमवन्तके समान ही वनोंसे शोभायमान है ॥ १७१७ ॥ वि. ८००.०० । उं. २००।
भरतक्षेत्रसे उत्तर तक इस पर्वतके बाणका प्रमाण उन्नीससे भाजित एकसौ पचास सहस्र (एक लाख पचास हजार ) योजन है ॥ १७१८ ॥ [ १५०००° =७८९४१६] ।
उस पर्वतके उत्तरभागमें जीवाका प्रमाण तिरेपन हजार नौसौ इकतीस योजन और छह कला है ।। १७१९ ॥ ५३९३१३६ ।
महाहिमवान् पर्वतकी जीवाका धनुपृष्ठ सत्तावन हजार दोसौ तेरानबै योजन और दश कलामात्र है ।। १७२० ॥ ५७२९३१२ ।
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१ द ब अवयं दं वलय. २ द तत्थि तरिया, ब तत्ति स तरिया. ३ द ब स्सणे हिं . ४ द ब पण्णरस'. ५द ब वदाणि.
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