SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२३] श्रीवीराय नम : । श्रीमान् धर्मनिष्ठ पूज्य श्रेष्ठिवर न. जीवराज गौतमचंद दोशी सोलापुरकी सेवामें atra महोत्सव शुभ प्रसङ्ग में सादर समर्पित - सम्मानपत्र श्रेष्ठिन् ! दुनियामें अध्यवसाय, लगन, सत्यनिष्ठता, विवेक व परिश्रम से सामान्य स्थितिका व्यक्तिमी किस प्रकार आदर्श व उच्चसमादरपूर्ण स्थानको प्राप्त कर सकता है, इस बातका निदर्शन आपने अपने जीवनसे उपस्थित किया है । धर्मनिष्ठ ! वंशपरंपरागत कुलाचार, बाल्यकाल से प्राप्त सुदृढ संस्कार एवं सत्संगति के प्रसादसे आपका जीवन इतना सुसंस्कृत और धार्मिक बना है कि जिसे देखकर बडे २ त्यागी भी आश्चर्यान्वित होते हैं । आपके नसनसमें धार्मिकता भरी हुई है । आपने जीवन में संपत्तिके संग्रकोही प्रधान ध्येय नहीं बनाया है, अपितु न्यायोपात्त धनका संग्रह कर पितृकुलकी प्रतिष्ठा की बुद्धि किसप्रकार की जा सकती है इसका पूर्ण ध्यान रक्खा है । तीर्थभक्त ! आपने अपने जीवन में जो अनेक धर्मकार्य किये हैं उनमें तीर्थ भक्तिभी उल्लेखनीय है | सिद्धक्षेत्र गजपन्थ और कुंथलगिरिके सर्वागीण समुन्नति व जीणाद्वारका सर्वश्रे आपकोही है | आपकी संलग्नता या चिन्ता न होती तो आज हम इन क्षेत्रों को इस समुन्नतदशा में नहीं देख सकते थे | आपके स्वनामधन्य पिताजीने पावागड क्षेत्र में मंदिर बनवाकर प्रतिष्ठा की तो आपने गजपंथ मंदिर निर्माणकर प्रतिष्ठा महोत्सव कराया है । स्थावर तीर्थोंकी भक्ति के साथ जंगम तीर्थस्वरूप श्रीचारित्रचक्रवर्ति आचार्य शान्तिसागरजी महाराज एवं अन्य साधुसंतों की आपने अनवरत सेवा करते हुए उनके पवित्र जीवनकी छाया अपने जीवन में कृतिरूप उतारनेका जो साहस किया है वह महापुरुषोंकोही साध्य है । महात्मनू, शीलव्रतके आन्तरिक रहस्यको आपने साक्षात्कार कर लिया है । समाजबंधु ! आपकी विद्वत्ता, गंभीरता एवं सबसे अधिक समाजहितैषिताका परिचय आपके द्वारा अनेक वर्षोंतक संपादित जैनबोधक पत्रसे समाजको अच्छी तरहसे हो चुका है । इसके अलावा आपके द्वारा लिखित, अनुवादित तत्त्वार्थसूत्र, जैन सिद्धान्त प्रवेशिका, हरिवंशपुराण आत्मानुशासन आदि ग्रन्थोंके स्वाध्याय के आनन्दको समाजके आबाल वृद्ध अनुभव कर रहे हैं । दानवीर ! " आत्मसम्मानकी रक्षाके लिये धनकी आवश्यकता है । धनका संरक्षण उसके सदुपयोगही हो सकता है " इस मर्मको आपने अपनी कृतिसे विश्व के सामने उपस्थित कर दिया है । श्रीमन् ! आपने चतुर्विध दानकी प्रवृत्ति से सखाराम नेमचंद जैन औषधालय, चतुर्विधदानशाला, ऐलक पन्नालाल जैन पाठशाला व स्थानीय दिगम्बर जैन गुरुकुलकी समुन्न तिम जो सक्रिय सहयोग दिया है उसीके फलसे आज ये संस्थायें आदर्श व उन्नतरूपमें विद्यमान हैं । आपने नेत्रचिकित्सालय के उपक्रमसे जिसप्रकार नेत्रहीनोंको नेत्रदान की आयोजना की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy