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॥ श्रीशांतिसागराचार्यपरमेष्ठिने नमः ॥
धर्मानुरागी, नैष्ठिक ब्रह्मचारी, तीर्थभक्त, श्री आचार्यसंघके परमसेवक, स्वनामधन्य, श्रेष्ठिवर्य, पूज्य ब्रह्मचारी जीवराज गौतमचंदजी दोशी, सोलापुर निवासी के करकमलोंमें ।
-: सकल दिगंबर जैन पंच कोपरगांवके द्वाराः
सादर सविनय समर्पित
अभिनंदन पत्र पूज्य ब्रह्मचारी, अलोट संपत्ति पाकर भोगोंकी उपेक्षा करके गृहस्थाश्रममें रहकरभी, सातमी प्रतिमा धारण करके आत्मकल्याणके लिए भोगादिक सामग्रीको तृणवत् तुच्छ माननेवालोंमें आप अग्रणी हैं । और हमारे धर्मानुमोदित आदर्शके मार्गदर्शक हैं ।
तीर्थभक्तजी, इस प्रांतमें श्री कुंथलगिरीजी और श्रीगजपंथजी दो परमपूज्य सिद्धक्षेत्र हैं। उनकी व्यवस्थाके लिए तनमन और धनको अर्पण करके आदर्श बनाने में आपकी सेवायें, प्रोत्साहन, लगन अनुपम हैं । यह सब आपके प्रोत्साहनकाहि प्रयत्न है, जो जगद्वंद्य श्री १०८ आचार्य शांतिसागरजीने गजपंथजीमें चातुर्मास करके, इस प्रांतके निवासियोंको मोक्षका मार्ग दिखाया है।
श्रीसंघभक्तजी, निग्रंथ गुरुवर्य चारित्रचक्रवर्ती १०८ श्री आचार्य महाराजके गुणानुरागसे प्रेरित होकर जैन धर्मकी प्रभावनाकेलिये उनके विहार करानेमें धर्मोपदेश और प्रभावनाके निमित्त मिलाने में आप बहुभाग व्यतीत करते हैं। और सद्गुरु समागमका लाभ सतत लेते हैं ।
श्रीमान्, हमारे प्रांत तथा नगरनिवासियोंको आपके द्वारा धर्मसेवा और धर्मप्रभावनेके द्वारा जो समयपर प्रोत्साहन मिलता है तथा प्रतिष्ठामहोत्सबके लिये भी जो प्रोत्साहन तथा सहयोग प्राप्त हुवा है उसीका यह परिणाम है की हम आज त्रिकालवंद्य परमपूज्य संघके दर्शन कर रहे हैं तथा अनेक वर्षोंसे निर्मित श्री जिनेंद्र मंदिरजीकी प्रतिष्ठाका परमपुण्य संपादन कर रहे हैं। आपमें और भी अनेक गुण हैं और उनका हमें सदैव लाभ हुवा है | अतः आपके गुणोंपर लुब्ध होकर हम अपनी कृतज्ञता प्रकट करनेके लिये श्रीमानके करकमलोंमें यह शाब्दिक श्रद्धाञ्जलि अर्पण करते हैं । तथा श्रीमानके द्वारा चिरकाल इससे भी अधिक समाजकी सेवा होवें ऐसी श्री जिनेंद्र चरणों में प्रार्थना करते हैं । संवत् १९९४,
श्रीमानके आज्ञानुवर्ती ता. २१।३।१९३८
सकल दिगंबर जैन पंच, कोपरगांव वीरसंवत् २४६४
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