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________________ -४. १२०२] चउत्यो महाधियारो [३०१ . फग्गुणबहुले पंचमिअवरण्हे अस्सिणीसु चंपाए । रूवाहियछसयजुदो' सिद्धिगदो वासुपुज्जजिणो ॥ ११९६ सुक्कट्ठमीपदोसे भासा जम्ममम्मि सम्मेदे । छस्सयमुणिसंजुत्तो मुक्ति पत्तो विमलसामी ॥ ११९७ ६००। चेत्तस्स किण्हपच्छिमदिणप्पदोसम्मि जम्मणक्खत्ते । सम्मेदम्मि अणंतो सत्तसहस्सेहिं संपत्तो ॥ ११९८ जेटस्स किण्हचोइसिपच्चूसे' जम्मभम्मि सम्मेदे । सिद्धो धम्मजिणिदो रूवाहियअडसएहि जुदो ॥ ११९९ जेटस्स किण्हचोदसिपदोससमयम्मि जम्मणक्खत्ते । सम्मेदे संतिजिणो णवसयमुणिसंजुदो सिद्धो ॥ १२०० वइसाहसुक्कपाडिवपदोससमए हि जम्मणक्खत्ते । सम्मेदे कुंथुजिणो सहस्ससहिदो गदो सिद्धिं ॥ १२०१ १०००। चेत्तस्स बहुलचरिमे दिणम्मि णियजम्मभम्मि पच्चूसे । सम्मेदे अरदेशो सहस्ससहिदो गदो मोक्खं ॥ १२०२ १०००। वासुपूज्य जिनेन्द्र फाल्गुन कृष्णा पंचमीके दिन अपराह्नकालमें अश्विनीनक्षत्रके रहते छहसौ एक मुनियोंसे संयुक्त होते हुए चम्पापुरसे सिद्धिको प्राप्त हुए हैं ॥ ११९६ ॥ ६०१।। विमलनाथ स्वामी आषाढशुक्ला अष्टमीके दिन प्रदोषकालमें अपने जन्मनक्षत्रके रहते छहसौ मुनियोंसे संयुक्त होते हुए सम्मेदशिखरसे मुक्तिको प्राप्त हुए हैं ॥ ११९७ ॥ ६०० । अनन्तनाथ भगवान् चैत्रमासके कृष्णपक्षसम्बन्धी पश्चिम दिन अर्थात् अमावस्याको प्रदोषकालमें अपने जन्मनक्षत्रके रहते सम्मेदशिखरसे सात हजार मुनियोंके साथ मोक्षको प्राप्त हुए हैं ॥ ११९८ ॥ ७०००। ___धर्मनाथ जिनेन्द्र ज्येष्ठकृष्णा चतुर्दशीके दिन प्रत्यूषकालमें अपने जन्म नक्षत्रके रहते आठसौ एक मुनियोंसे युक्त होते हुए सम्मेदशिखरसे सिद्ध हुए हैं ॥ ११९९ ॥ ८०१ । शान्तिनाथ तीर्थकर ज्येष्ठकृष्णा चतुर्दशीके दिन प्रदोषसमयमें अपने जन्मनक्षत्रके रहते नौसौ मुनियोंसे संयुक्त होते हुए सम्मेदशिखरसे सिद्ध हुए हैं ॥ १२०० ॥ ९०० । कुंथुजिन वैशाखशुक्ला प्रतिपदाके दिन प्रदोषसमयमें अपने जन्मनक्षत्रके रहते एक हजार मुनियोंसे सहित होते हुए सम्मेदशिखरसे सिद्धिको प्राप्त हुए हैं ॥ १२०१ ॥ १००० । अरनाथ भगवान् चैत्रकृष्णा अमावस्याके दिन प्रत्यूषकालमें अपने जन्मनक्षत्रके रहते एक हजार मुनियोंके साथ सम्मेदशिखरसे मोक्षको प्राप्त हुए हैं ।। १२०२ ॥ १ द छसयदा. २ दर पज्जूसे. ३ दर किण्हपदोसे. ४ द व संजुदा सिद्धा. ५ द दिणिन्मि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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