SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०२ ] तिलोयपण्णत्ती [ १. १२०३ पंचमिपदोससमए फग्गुणबहुलम्मि भरणिणक्खत्ते । सम्मेदे मल्लिजिणो पंचसयसमं गदो' मोक्ख ॥ १२०३ ५००। फग्गुणकिण्हे बारसिपदोससमयम्मि जम्मणक्खत्ते । सम्मेदे सिद्धिगदो सुन्बददेभो सहस्ससंजुत्तो ॥ १२०४ १०००। वइसाहकिण्हचोदसिपच्चसे जम्मभम्मि सम्मेदे । णिस्सेयससंपण्णो समं सहस्सेण णमिसामी ॥ १२०५ बहुलटुमीपदोसे आसाढे जम्मभम्मि उजंते । छत्तीसाधियपणसयसहिदो णेमीसरो सिखो॥ १२०६ ५३६ । सिदसत्तमीपदोसे सावणमासम्मि जम्मणक्वत्ते । सम्मेदे पासजिणो छत्तीसजुदो गदो मोक्ख ॥ १२०७ कत्तियकिण्हे चोइसिपञ्चूसे सादिणामणक्खत्ते । पावाए गयरीए एक्को वीरेसरो सिद्धो ॥ १२०८) उसहो चोदसदिवसे दुदिणं वीरेसरस्स सेसाणं । मासेण य विणिवित्ते जोगादो मुसिसंपण्णो॥ १२०९ उसहो य वासुपुज्जो मी पल्लंकबड्या सिद्धा । काउस्सग्गेण जिणा सेसा मुत्तिं समावण्णा ॥ १२१० मल्लिनाथ तीर्थंकर फाल्गुनकृष्णा पंचमीको प्रदोषसमयमें भरणीनक्षत्रके रहते सम्मेदशिखरसे पांचसौ मुनियोंके साथ मोक्षको प्राप्त हुए हैं ॥ १२०३ ॥ ५०० । सुव्रतदेव फाल्गुनकृष्णा बारसके दिन प्रदोषसमयमें अपने जन्मनक्षत्रके रहते एक हजार मुनियोंसे सहित होते हुए सम्मेदशिखरसे सिद्धिको प्राप्त हुए हैं ।। १२०४ ॥ १००० । नमिनाथ स्वामी वैशाखकृष्णा चतुर्दशीके दिन प्रत्यूषकालमें अपने जन्मनक्षत्रके रहते सम्मेदशिखरसे एक हजार मुनियोंके साथ निश्रेयसपदको प्राप्त हुए हैं ॥ १२०५ ॥ १००० ।। भगवान् नेमीश्वर आषाढकृष्णा अष्टमीके दिन प्रदोषकालमें अपने जन्मनक्षत्रके रहते पांचसौ छत्तीस मुनियोंसे सहित होते हुए ऊर्जयन्तगिरिसे सिद्ध हुए हैं ।। १२०६ ॥ ५३६ । पार्श्वनाथ जिनेन्द्र श्रावणमासमें शुक्लपक्षकी सप्तमीको प्रदोषकालमें अपने जन्मनक्षत्रके रहते छत्तीस मुनियोंसे युक्त होते हुए सम्मेदशिखरसे मोक्षको प्राप्त हुए हैं ।। १२०७ ॥ ३६ । भगवान् वीरेश्वर कार्तिककृष्णा चतुर्दशीके दिन प्रत्यूषकालमें स्वाति नामक नक्षत्रके रहते पावापुरसे अकेले ही सिद्ध हुए हैं ॥ १२०८ ॥ १। ___भगवान् ऋषभदेवने चौदह दिन पहिले, महावीर स्वामीने दो दिन पहिले, और शेष तीर्थंकरोंने एक मास पूर्वमें योगसे विनिवृत्त होनेपर मुक्तिको प्राप्त किया है ॥ १२०९ ॥ भगवान् ऋषभनाथ, वासुपूज्य और नेमिनाथ पल्यंकबद्ध आसनसे, तथा शेष जिनेन्द्र कायोत्सर्गसे मुक्तिको प्राप्त हुए हैं ॥ १२१०॥ .... १. द ब ‘सयस्समगदो. २ द सिद्धा, ३ द ब पज्जूसे.' ४ द पलंकउया. . . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy