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________________ ३०० ] . तिलोयपण्णत्ती [४. १९८९चेत्तस्स सुक्कदसमीपुव्वण्हे जम्मभम्मि सम्मेदे । दससयरिसिसंजुत्तो' सुमइस्सामी स मोक्खगदो ॥ १८९ फग्गुणकिण्हचउत्थीमवरण्हे जम्मभाम्मि सम्मेदे । चउवीसाधियतियसयसहिदो पउमप्पहो देवो ॥१९९० ३२४ । फग्गुणबहुलच्छट्ठीपुग्वण्हे पव्वदम्मि सम्मेदे । अणुराहाए पणसयजुत्तो मुत्तो सुपासजिणो॥ ११९१ सिदसत्तमिपुवण्हे भहपदे मुणिसहस्ससंजुत्तो । जेट्टासु सम्मेदे चंदप्पहजिणवरो सिद्धो ॥ ११९२ अस्सजुदसुकभट्टमिभवरण्हे जम्ममम्मि सम्मेदे। मुणिवरसहस्ससहिदो सिद्धिगदो पुप्फदंतजिणो ॥ ११९३ कत्तियसुक्के पंचमिपुव्वण्हे जम्मभम्मि सम्मेदे । णिव्वाणं संपत्तो सीयलदेवो सहस्सजुदो ॥ ११९४ १०००। सावणियपुण्णिांए पुव्वण्हे मुणिसहस्ससंजुत्तो। सम्मेदे सेयंसो सिद्धिं पत्तो धणिटासुं ॥ ११९५ १०००। सुमतिनाथ स्वामी चैत्र शुक्ला दशमीके दिन पूर्वाह्नकालमें अपने जन्मनक्षत्रके रहते सम्मेदशिखरसे दशसौ ऋषियोंके साथ मोक्षको प्राप्त हुए हैं ॥ ११८९ ।। १००० ।। पद्मप्रभदेव फाल्गुनकृष्णा चतुर्थीके दिन अपराह्नकालमें अपने जन्मनक्षत्रके रहते सम्मेदशिखरसे तीनसौ चौबीस मुनियोंसे सहित होते हुए मुक्तिको प्राप्त हुए हैं ॥ ११९० ॥ ३२४ । सुपार्श्व जिनेन्द्र फाल्गुनकृष्णा षष्ठीको पूर्वाह्नसमयमें अनुराधा नक्षत्रके रहते सम्मेदपर्वतसे पांचसौ मुनियोंसे युक्त होते हुए मुक्तिको प्राप्त हुए हैं ॥ ११९१ ॥ ५०० । __चन्द्रप्रभ जिनेन्द्र भाद्रपदशुक्ला सप्तमीको पूर्वाह्नकालमें ज्येष्ठा नक्षत्रके रहते एक हजार मुनियोंसे संयुक्त होते हुए सम्मेदशिखरसे मुक्त हुए हैं ॥ ११९२ ॥ १०००। पुष्पदन्तजिन आश्विन शुक्ला अष्टमीके दिन अपराहकालमें अपने जन्मनक्षत्रके रहते सम्मेदशिखरसे एक हजार मुनियोंके साथ सिद्धिको प्राप्त हुए हैं ॥ ११९३ ॥ १००० । शीतलदेव कार्तिक शुक्ला पंचमीके पूर्वाह्नसमयमें अपने जन्मनक्षत्रके रहते सम्मेदशिखरसे एक हजार मुनियोंके साथ निर्वाणको प्राप्त हुए हैं ।। ११९४ ॥ १००० । भगवान् श्रेयांस श्रावणकी पूर्णिमाको पूर्वाहमें धनिष्ठानक्षत्रके रहते सम्मेदशिखरसे एक हजार मुनियोंसे सहित होते हुए सिद्धिको प्राप्त हुए हैं ॥ ११९५ ॥ १००० । १द व संजुत्ता. २६ ब 'जुत्ता. ३१ संजुदो. ४ व पुण्णमाए. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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