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________________ - १. ११८८] चउत्यो महाधियारो [२९९ एकेक चिय लक्खं कुंथुजिणिदादिअट्ठतित्येसुं । सव्वाण सावयाण मेलिदे अदाललक्खाणि ॥ ११८२ ८।१०००००। ४८०००००। पणचउतियलक्खाई पण्णविदौतित्थेसुं । पुह पुह सावगिसंखा सन्चा छण्णउदिलक्खाइं ॥ ११८३ ५०००००। ४०००००। ३०००००। ९६०००००। देवीदेवसमूहा संखातीदा हुवंति णरतिरिया । संखेजा एकेके तित्थे विहरति भत्तिजुत्ता ये ॥ ११८४ माघस्स किण्हचोदसिपुग्वण्हे णिययजम्मणक्खत्ते । भट्ठावयम्मि उसहो अजुदेण समं गमो णोमि ॥ ११८५) (चेत्तस्स सुद्धपंचमिपुज्वण्हे भरणिणामरिक्खम्मि । सम्मेदे अजियजिणे मुक्ति पत्तो सहस्ससमं ॥ ११८६ चेत्तस्स सुकछट्टीमवरण्हे जम्मभम्मि सम्मेदे । संपत्तो अपवग्गं संभवसामी सहस्सउँदो ॥ ११८७ वइसाहसुक्सत्तमिपुज्वण्हे जम्ममम्मि सम्मेदे । दससयमहेसिसहिदो गंदणदेवो गदो मोक्खं ॥ ११८८ इसके आगे कुंथुनाथादि आठ तीर्थंकरों से प्रत्येकके तीर्थमें श्रावकोंकी संख्या एक एक लाख कही गयी है। सब श्रावकोंकी संख्याको मिलाने पर समस्त प्रमाण अड़तालीस लाख होता है ॥ ११८२ ॥ कुंथुनाथप्रभृति ८-१००००० । समस्त ४८००००० । ___ आठ आठ तीर्थंकरोंके तीर्थों में श्राविकाओंकी संख्या पृथक् पृथक् क्रमसे पांच लाख, चार लाख, और तीन लाख; तथा सम्पूर्ण श्राविकाओंकी संख्या छयानबै लाख कही गयी है ।। ११८३ ।। ५०००००। ४०००००। ३०००००। ९६०००००। प्रत्येक तीर्थकरके तीर्थमें असंख्यात देव-देवियोंके समूह और संख्यात मनुष्य एवं तिर्यंच जीव भक्तिसे संयुक्त होते हुए विहार किया करते हैं ॥ ११८४ ॥ ___ ऋषभनाथ तीर्थकर माघकृष्णा चतुर्दशीके पूर्वाह्नकालमें अपने जन्मनक्षत्रके रहते कैलाशपर्वतसे दश हजार मुनियोंके साथ [ मुक्तिको ] प्राप्त हुए हैं । उनको मैं नमस्कार करता हूं ॥ ११८५ ॥ १०००० । अजित जिनेन्द्र चैत्र शुक्ला पंचमीके दिन पूर्वाह्नकालमें भरणी नामक नक्षत्रके रहते सम्मेदशिखरसे एक हजार मुनियोंके साथ मुक्तिको प्राप्त हुए हैं ॥ ११८६ ॥ १००० । — सम्भवनाथ स्वामी चैत्रशुक्ला षष्ठीके दिन अपराह्नसमयमें जन्म नक्षत्रके रहते सम्मेदशिखरसे एक हजार मुनियोंके साथ अपवर्ग अर्थात् मोक्षको प्राप्त हुए हैं ॥ ११८७ ॥ १०००। अभिनन्दनजिन वैशाखशुक्ला सप्तमीको पूर्वाह्नसमयमें अपने जन्मनक्षत्रके रहते सम्मेदशिखरसे दशसौ महर्षियोंके साथ मोक्षको प्राप्त हुए हैं ॥ ११८८ ॥ १००० । १ ब एकंकं. २ व ८४० ० ० ० ०. ३ द ब पण्णिदिरा. ४ द एकेको. ५ द ब भत्तिजुत्तो. ६ द ब जोमि. ७द ब मुत्ति पत्ता. ८ द ब सहस्सजुदा. ९ दब देवा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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