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तिलोयपण्णसी
[४. १९७४
अरजिणवरिदतित्थे सट्रिसहस्साणि होति विरदीमो। पणवण्णसहस्साणि मल्लिजिणेसस्स तित्थम्मि ॥११७४
२००००। ५५०००। पण्णाससहस्साणिं विरदीओ सुम्बदस्स तित्थम्मि । पंचसहस्सब्भहिया चालसहस्सा णमिजिणम्मि ॥११७५
५००००। ४५०००। विगुणियवीससहस्सा णेमिस्स कमेण पासवीराण । अडतीस छत्तीसं होंति सहस्साणि विरदीमो॥१९७६
४००००।३८०००।३६०००। भपणदुछपंचंबरपंचंककमेण तित्थकत्ताणं। सव्वाण विरदीमो चंदुजलणिकलंकसीलामो ॥ ११७७
५०५६२५०।। बम्हप्पकुजणामा धम्मसिरी मेरुसेणअयणता। तह रतिसेणा मीणा वरुणा घोसा य धरणा य ॥ ११७८ चारणवरसेणाओ पम्मासम्वस्सिसुब्वदाओ वि । हरिसेणभावियानो कुंथूमधुसेणपुष्वदत्ताभो ॥ ११७९ मग्गिणिजक्खिसुलोया चंदणणामामो उसहपहुदीर्ण । एदा पढमगणीमओ एकेक्का सम्वविरदीभो ॥ ११८० लक्खाणि तिणि सावयसंखा उसहादिअट्टतिस्थेसु । पत्तेकंदो लक्खा सुविहिप्पहदीसु अट्टतिस्थेसु ॥ ११८१
८।३०००००।२०००००। अर जिनेन्द्रके तीर्थमें साठ हजार और मल्लि जिनेन्द्रके तीर्थमें पचवन हजार आर्यिकायें थीं ॥ ११७४ ॥ ६०००० । ५५००० ।
सुव्रतके तीर्थमें पचास हजार और नमिजिनके तीर्थमें पांच हजार अधिक चालीस हजार अर्थात् पैंतालीस हजार आर्यिकायें थीं ।। ११७५ ॥ ५००००। ४५०००।
नेमिनाथके तीर्थमें द्विगुणित बीस हजार अर्थात चालीस हजार और क्रमसे पार्श्वनाथ एवं वीर भगवानके तीर्थमें अडतीस तथा छत्तीस हजार आर्यिकायें थीं ॥ ११७६ ॥
४००००। ३८०००। ३६०००। सब तीर्थंकरोंके तीर्थमें चन्द्रके समान उज्ज्वल एवं निष्कलंक शीलसे संयुक्त समस्त आर्यिकायें क्रमसे शून्य, पांच, दो, छह, पांच, शून्य और पांच, इन अंकोंके प्रमाण थीं ॥११७७॥
५०५६२५० । ब्राह्मी, प्रेकुब्जा, धर्मश्री, मेरुषेणा, अनन्ता, रतिषेणी, मीना, वरुणा, घोषां, धरणा, चारणी, (धारणा), वरसेना, पैमा, सर्वश्री, सुव्रता, हरिषेणी, भाविता, कुंथुसेना, मधुसेनी (बंधुसेना), पूर्वदत्ती ( पुष्पदत्ता ), मौर्गिणी, यक्षिणी", सुलोका (सुलोचना) और चन्दी नामक ये एक एक आर्यिकायें क्रमसे ऋषभादिकके तीर्थमें रहनेवाली आर्यिकाओंके समूहमें मुख्य थीं ॥११७८-११८०॥
श्रावकोंकी संख्या ऋषभादिक आठ तीर्थंकरोंमेंसे प्रत्येकके तीर्थमें तीन लाख और सुविधिनाथप्रभृति आठ तीर्थंकरोंमेंसे प्रत्येकके तीर्थमें दो लाख थी ॥ ११८१ ॥
ऋषभादिक ८--- ३०००००, सुविधिनाथप्रभृति ८-२००००० ।
१ द ब °णिम्मलंक. २ द ब बम्हप्पकुव्वणामा, ३ बणामा. ४ द ब पम्मासत्तस्ससुद्धधाओ वि. ५ द सुविहप्पहुदीसु.
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