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-४. १०७३ ]
चउत्थो महाधियारो
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उकस्सक्खउवसमे पविसेसे विरियविग्धपगडीए । मासचउमासपमुंहे काउस्सग्गे वि समहीणा ॥ १०६५। उच्चट्रिय तेल्लोक झत्ति कणिटुंगुलीए अण्णत्थं । थविदुं जीए समत्था सा रिद्धी कायबलणामा ॥ १०६६
।एवं बलरिद्धी समत्ता । आमरिसखेलजल्ला मलविप्पुसव्वा ओसहीपुब्वा । मुहदिट्टिाणिविसामो अविहा भोसही रिद्धी ॥ १०६७ रिसिकरचरणादीणं भलियमेत्तम्मि जीए पासम्मि । जीवा होंति णिरोगा सा अम्मरिसोसही रिद्धी ॥ १०६८ जीए लालासेमच्छीमलसिंहाणआदिआ सिग्धं । जीवाण रोगहरणा स चिय खेलोसही रिद्धी ॥ १०६९ सेयजलो अंगरयं जलं भण्णेत्ति जीए तेणावि । जीवाण रोगहरणं रिद्धी जल्लोसही णामा ॥ १०७० जीहोटदंतणासासोत्तादिमलं पि जीए सत्तीए । जीवाण रोगहरणं मलोसही णाम सा रिद्धी ॥ १०७१ मुत्तपुरीसो वि पुढं दारुणबहुजीववायसंहरणा । जीए महामुणीण विप्पोसहि णाम सा रिद्धी ॥ १०७२ जीए पस्सजलाणिलरोमणहादीणि वाहिहरणाणि । दुक्करतवजुत्ताणं रिद्धी सब्बोसही णामा ॥ १०७३
जिस ऋद्धिके बलसे वीर्यान्तराय प्रकृतिके उत्कृष्ट क्षयोपशमकी विशेषता होनेपर मुनि मास व चतुर्मासादिरूप कायोत्सर्गको करते हुए भी श्रमसे रहित होते हैं, तथा झटिति (शीघ्रतासे) तीनों लोकोंको कनिष्ठ अंगुलीके ऊपर उठाकर अन्यत्र स्थापित करने के लिये समर्थ होते हैं, वह कायबल नामक ऋद्धि है ।। १०६५-१०६६ ॥
इसप्रकार बलऋद्धिका वर्णन समाप्त हुआ । आमीषधि, क्षेलौषधि, जल्लौषधि, मलौषधि, विप्रौषधि (विडौषधि), सर्वोषधि, मुखनिर्विष और दृष्टिनिर्विष, इसप्रकार औषधिऋद्धि आठ प्रकारकी है ॥ १०६७ ।।
जिस ऋद्धिके प्रभावसे जीव पासमें आने पर ऋषिके हस्त व पादादिके स्पर्शमात्रसे ही नीरोग होजाते हैं, वह आमौंषधिऋद्धि है ॥ १०६८ ॥
जिस ऋद्धिके प्रभावसे लार, कफ, अक्षिमल और नासिकामल शीघ्र ही जीवोंके रोगोंको नष्ट करता है, वह क्षेलौषधिऋद्धि है ॥ १०६९॥
___ स्वेदजल ( पसीना ) के आश्रित अंगरज जल्ल कहा जाता है । जिस ऋद्धिके प्रभावसे उस अंगरजसे भी जीवोंके रोग नष्ट होते हैं, वह जल्लौषधिऋद्धि कहलाती है ॥ १०७० ॥
जिस शक्तिसे जिह्वा, ओठ, दांत, नासिका और श्रोत्रादिकका मल भी जीवोंके रोगोंको दूर करनेवाला होता है, वह मलौषधि नामक ऋद्धि है ॥ १०७१ ॥
___जिस ऋद्धिके प्रभावसे महामुनियोंका मूत्र व विष्ठा भी जीवोंके बहुत भयानक रोगोंको नष्ट करनेवाला होता है, वह विप्रौषधि नामक ऋद्धि कहलाती है ॥ १०७२ ॥
जिस ऋद्धिके बलसे दुष्कर तपसे युक्त मुनियोंका स्पर्श किया हुआ जल व वायु, तथा उनके रोम और नखादिक व्याधिके हरनेवाले हो जाते हैं, वह सर्वोषधि नामक ऋद्धि है ॥ १०७३ ॥
१ द पयडीए. २ द व पमुहो. ३ द तेलोकं. ४ द व सेमच्छेवर. ५ द व रोमपहादीणि.
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