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________________ २६८ ] तिलोयपण्णत्ती [ ४. ९४५ चोइसवच्छरस मधियच उपुग्वंगोणपुग्वद्द गिलक्खं । संभवजिशिंदे भणिदं केवलिकालस्स परिमाणं ॥ ९४५ संभव पुण्व ९९९९९ पुग्वंग ८३९९९९५ वस्ल ८३९९९८६ । अट्ठारसवरिसाधियभडपुब्वंगोणपुष्यई गिलक्खं । केवलिकालयमाणं णंदणणाहम्मि णिहिं ॥ ९४६ मंदण पुच ९९९९९ पुव्वंग ८३९९९९१ वस्स ८३९९९८२ । वीस दिवच्छरसमधियबारसपुध्वंगहीणपुण्वाणं । एक्कं लक्खं होदि हु केवलिकालं सुमहणाहम्मि || ९४७ सुमह पुण्व ९९९९९ अंग ८३९९९८७ वस्स ८३९९९८० । विगुणियतिमास समधिय सोलसपुवंगहीणपुष्वाणं । इगिलक्खं पउमपहे केवलिकालस्स परिमाणं ॥ ९४८ पउम पुण्व ९९९९९ अंग ८३९९९८३ वस्स ८३९९९९९ मा ६ । णव संवच्छरसमधियवीसदिपुब्वंगहीणपुण्वाणं । एक्कं लक्खं केवलिकालपमाणं सुपासजिणे ॥ ९४९ सुपास पुत्र ९९९९९ अंग ८३९९९७९ वस्स ८३९९९९१ । मासत्तिदयाद्दियैचउवीसदिपुध्वंगर हिदपुव्वाणं । इगिलक्खं चंदप्पहकेवलिकालस्स संखाणं ॥ ९५० चंद पुत्र] ९९९९९ पुग्वंगं ८३९९९७५ वस्स ८३९९९९९ मास ९ । चउवच्छरस मधिय अडवीसदिपुच्वंगऊणपुब्वाणं । एक्कं लक्खं केवलिकालपमाणं च पुप्फदंतजिणे ॥ ९५१ पुष्क पुत्र ९९९९९ अंग ८३९९९७१ वस्स ८३९९९९६ । सम्भवनाथ तीर्थंकरके केवलिकालका प्रमाण चौदह वर्ष चार पूर्वांग कम एक लाख पूर्व कहा गया है || ९४५ ॥ संभव पूर्व ९९९९९, पूर्वांग ८३९९९९५, वर्ष ८३९९९८६ । अभिनन्दननाथके केवलिकालका प्रमाण अठारह वर्ष और आठ पूर्वांग कम एक लाख पूर्वनिर्दिष्ट किया गया है ॥ ९४६ ॥ अभिनन्दन पूर्व ९९९९९, पूर्वांग ८३९९९९९, वर्ष ८३९९९८२ । सुमतिनाथके केवलिकालका प्रमाण बीस वर्ष और बारह पूर्वांग कम एक लाख पूर्व है || ९४७ ॥ सुमति पूर्व ९९९९९, पूर्वांग ८३९९९८७ वर्ष ८३९९९८० । भगवान् पद्मप्रभके केवलिकालका प्रमाण छह मास और सोलह पूर्वांग कम एक लाख पूर्व है ॥ ९४८ ॥ पद्मपूर्व ९९९९९, पूर्वांग ८३९९९८३, वर्ष ८३९९९९९, मास ६ । सुपार्श्व जिनेन्द्र के केवलिकालका प्रमाण नौ वर्ष और बीस पूर्वांग कम एक लाख पूर्व है ॥ ९४९ ॥ सुपार्श्व पूर्व ९९९९९, पूर्वांग ८३९९९७९ वर्ष ८३९९९९१ | चन्द्रप्रभ तीर्थंकरके केवलिकालकी संख्या तीन माह और चौबीस पूर्वांग कम एक लाख पूर्व है ॥ ९५० ॥ चन्द्र पूर्व ९९९९९, पूर्वांग ८३९९९७५, वर्ष ८३९९९९९ मास ९ । पुष्पदन्त तीर्थंकरके केवलिकालका प्रमाण चार वर्ष और अट्ठाईस पूर्वांग कम एक लाख पूर्व है || ९५१ ॥ पुष्पदन्त पूर्व ९९९९९, पूर्वांग ८३९९९७१, वर्ष ८३९९९९६ । १ द अडपुवंगाण. द ब मासं तिया विय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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