SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२४] मेरे हातसे अन्याय्य होगा। इसलिए किसीकी भीड रखना ही नहीं और किसीपर भीडका बोझा लादना ही नहीं।' आपके निस्पृह वृत्तिका यह आदर्श है। धर्मसेवा _____ लोकमान्य तिलकजीने गणपति उत्सव शुरू किया। लोगोंमें राष्ट्रकार्यकी प्रवृत्ति निर्माण करना यह उसका आद्य हेतु था। लेकिन अन्धानुकरणसे जैन लडके गणपति जैसे हिंदु धर्मके उत्सवमें शामिल होना जैन समाजके लिए विघातक है यह सोचकर जीवराजभाईने अपने पजूसणके त्यौहारमें भगवत् गुणगान के स्वरूपसे लोगोंमें धर्मप्रीति निर्मित करने के लिए छोटे लडकोंसे भक्तिप्रधान पद्यगान करनेका क्रम शुरू किया। अपने चरित्रनायक ही उसके अधिपति थे। जीवराज भाईने दूसरा कार्य किया जैन कीर्तन कारकी निर्मिति का। स्वयं पेटी बजाकर उन्होंने श्री. पार्श्वनाथ फडकुले शास्त्रीको जैन कीर्तन करने में साथ दिया । .. कुंथलगिरि क्षेत्रकी अवस्था शोचनीय थी। इसलिए सं. १९८५ में पूज्य गुरुवर्य श्री समंतभद्र महाराज की प्रेरणासे शोलापुरमें दिगंबर समाजकी सभा लेकर उस क्षेत्रका कब्जा लिया। व्यवस्था कमेटीका कार्यकारित्व जीवराजभाईके तरफ सोंपा गया। उसके बाद आज वीस बाईस बरसमें उस क्षेत्रकी अनेक प्रकारसे उन्नति हुई है। श्री कुलभूषण देशभूषण मंदिर के नये मंडपके जीर्णोद्धारका कार्य सं. १९९१ में शुरू हुआ। जीवराजभाईने वहाँ पांच सात साल रहकर और अपना स्वयं १४ हजार रुपया भी खर्च कराकर वह कार्य पूरा किया । श्री गजपंथ क्षेत्रपर भी श्री प. पूज्य आचार्य शांतिसागर महाराजकी आज्ञासे पहाडपर मंदिर बांधकर संवत् १९९० में उसकी प्रतिष्ठा की। उस काममें उन्हें अठारह हजार रुपये खर्च करने पडे । शिक्षाप्रसार शिक्षाप्रसार के लिए जीवराजभाई ने बहुत मदद की। प्रमुखतया उन्होंने ऐल्लक पन्नालाल दि. जैन पाठशालाके हायस्कूलका जैन गुरुकुलमें रूपांतर कराकर स्वधर्मीय सैंकडो लड़कोंके शिक्षा का प्रबंध किया। धार्मिक अध्ययन के साथ व्यावहारिक शिक्षा देनेका हायस्कूल बनाकर जैन समाजके गरीब लड़कोंपर अगणित उपकार किए हैं। इसक सिवा मातृगृहके दो लड़कोंकी. इलेक्ट्रिक इंजिनियर और डॉक्टर [ M. B. B. S.] की शिक्षा पानेके लिए बहुत बडी सहायता की। जैन बोर्डिंगके अनाथालयको तेरा बरस तक वार्षिक मदद दरसाल • रु. ३०० की तरह ४००० रु., गुरुकुलको दरसाल रु. ३०० की तरह रु. ३७०० देकर : लडकोंको शिक्षा लेनेकी सुविधा प्राप्त कर दी। इसके सिवा सेडबाळ, बनारस विद्यालय, श्राविकाश्रम, पाठशाला, महावीर ब्रह्मचर्याश्रम आदि शिक्षणसंस्थाओंको हजारों रुपये देकर सहाय्यता की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy