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________________ २५८ ] तिलोयपण्णत्ती [ ४. ८६६ पत्तेक्कं कोट्ठाणं पणधीसुं तह य सयलवीहीणं' । होंति हु सोलस सोलस सोवाणा पढमपीढेसुं ॥ ८६६ रुद्रेण पढमपीढा कोसा चडवीस बारसेहिं हिदीं । असहजिशिंदे कमसो एक्कोणा जाव णेमिजिणं ॥ ८६७ २० | १९ | १८ | १७ १६ | १५ | १४ | १३ | १२ | ११ १२ | १२ | १२ | १२ | १२ | १२ | १२ | १२ | १२ | १२ ८ ७ ६ ५ ४ ३ २४ २३ २२ | २१ १२ | १२ | १२ | १२ | १० ९ १२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ पणपरिमाणा कोसा चडवीसहिदा य पासणाहम्मि । एक्को चिय छकहिदे देवे सिरिवमाणम्मि || ८६८ २४ पीढणं परिहीओ नियणियवित्थारतिउणियपमाणा । वररयणणिम्मियाओ अणुवमरमणिजसोहाओ ॥ ८६९ २४ | २३ | २२ | २१ २० १९ | १८ | १७ | १६ | १५ | १४ १३ १२ ११ १० ९ H ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ 67 ६ ५ ४ ३ ५ ४ ८ ८ ८ ४ ४ ४ ४ ४ वलयोत्रमंपीढेसुं विविहञ्चणदव्वमंगलजुदेसुं । सिरधरिदधम्मचक्का चेट्टंते चउदिसासु जक्खिदा || ८७० चावाणि छस्सहस्सा अहिंदा पीढमेहलारुंदं । उसहजिणे पण्णाधिय दोसयऊणाणि जाव णेमिजिणं ॥ ८७१ ५२५० | ५००० ४७५० ४५०० ४२५० ४००० ३७५० ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ Jain Education International ६००० ५७५० ८ ८ ५५०० ८ ५ १ ३५०० ३२५० ३००० ८ ८ १००० ८ ७५० ८ ८ २७५० ८ २५०० २२५० ८ २००० ८ १७५० 6 १५०० १२५० 10° / 9. For Private & Personal Use Only ८ प्रथम पीठोंके ऊपर उपर्युक्त बारह कोठोंमेंसे प्रत्येक कोठोंके प्रवेशद्वारोंमें और समस्त (चार) वीथियोंके सन्मुख सोलह सोलह सोपान होते हैं || ८६६ ॥ ऋषभदेव के समवसरणमें प्रथम पीठका विस्तार बारहसे भाजित चौबीस कोस था । फिर इसके आगे नेमि जिनेन्द्रतक क्रमशः एक एक अंश कम होता गया है || ८६७ ॥ पार्श्वनाथ तीर्थंकरके समवसरण में प्रथम वेदीका विस्तार चौबीस से भाजित पांच कोस, और श्रीवर्धमान भगवान् के छहसे भाजित एक को प्रमाण था || ८६८ ॥ पीठोंकी परिधियोंका प्रमाण अपने अपने विस्तारसे तिगुणा होता है । ये पीठिकायें उत्तम रत्नोंसे निर्मित और अनुपम रमणीय शोभासे संपन्न होती हैं || ८६९ ॥ चूड़ीके सदृश अर्थात् गोल और नाना प्रकारकी पूजाद्रव्य एवं मंगलद्रव्योंसे सहित इन पीठोंपर चारों दिशाओंमें सिरपर धर्मचक्रको रखे हुए यक्षेन्द्र स्थित रहते हैं ॥ ८७० ॥ ८ ऋषभ जिनेन्द्र के समवसरण में पीठकी मेखलाका विस्तार आठसे भाजित छह हजार धनुष प्रमाण था । पुनः इसके आगे नेमिनाथ तीर्थंकरतक क्रमशः उत्तरोत्तर दोसौ पचास अंश कम हो गये हैं || ८७१ ॥ १ द पणवीसुत्तयसयवीहीणं, ब पणधीसुत्तयसयलवीहीणं.. २ द ब हदा. www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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