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तिलोयपण्णत्ती
[४. ८५३
णिम्मलपडिहविणिम्मियसोलसभित्तीण अंतरे कोट्ठा । बारस ताणं उदओ णियाजिणउदएहिं बारसहदेहिं ॥ ८५३
६००० । ५४००। ४८००। ४२०० । ३६००।३००० । २४०० । १८०० । १२०० । १०८० । ९६० । ८४०। ७२० । ६०० । ५४० । ४८० । ४२० । ३६० । ३०० । २४० ।
१८० । १२० । २७ । २१ । वीसाहियकोससयं रुंदं कोट्ठाण उसहणाहम्मि । बारसवग्गेण हिदं पणहीणं जाव मिजिणं ॥ ८५४
१२० | ११५ ११० १०५ १०० ९५ । ९० ८५ ८० ७५ ७० ६५ | १४४/१४४१४४ | १४४१४४ | १४४ १४४ १४४ १४४ | १४४ १४४ १४४
१४४ | १४४ | १४४ | १४४/१४४ १४४ १४४ १४४ | १४४ १४४| पासजिणे पणवीसा अडसीदीअधियदुसयपविहत्ता । वीरजिणिदे दंडा पंचघणा दसहदा य णवभजिदा ॥ ८५५
२५ १२५० २८८ ९ ।
। सिरिमंडवा समत्ता। चेटुंति रिसिगणाई' कोढाणभंतरेसु पुवादी । पुह पुह पदाहिणेणं गणाण साहमि विण्णासा ॥ ८५६ अक्खीणमहाणसिया सप्पीखीरामियासवरसाभो । गणहरदेवप्पमुहाँ कोटे पढमम्मि चेटुंति ॥८५७ बिदियम्मि फलिहभित्तीअंतरिदे कप्पवासिदेवीओ। तदियम्मि अजियाओ सावइयाओ विणीदाओं ॥ ८५८
निर्मल स्फटिकमणिसे निर्मित सोलह दीवालोंके बीच में बारह कोठे होते हैं । इन कोठोंकी उंचाई अपने अपने जिनेन्द्रकी उंचाइसे बारहगुणी होती है ॥ ८५३ ॥
ऋषभनाथ तीर्थंकरके समवसरणमें कोठोंका विस्तार बारहके वर्ग अर्थात् एकसौ चवालीससे भाजित एकसौ बीस कोसप्रमाण था। इसके आगे नेमिनाथ तीर्थकरतक क्रमशः उत्तरोत्तर पांच पांच कम होते गये हैं ॥ ८५४ ॥
___पार्श्वनाथ तीर्थंकरके समवसरणमें इन कोठोंका विस्तार दोसौ अठासीसे भाजित पच्चीस कोस और महावीर स्वामीके पांचके घनको दशसे गुणा करके नौका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतने धनुषप्रमाण था ॥ ८५५ ॥
श्रीमण्डपोंका वर्णन समाप्त हुआ। ___ इन कोठोंके भीतर पूर्वादि प्रदक्षिणक्रमसे पृथक् पृथक् ऋषि आदि बारह गण बैठते हैं । इन गणोंके विन्यासका आगे कथन करता हूं ॥ ८५६ ॥
___ इन बारह कोठोंमेंसे प्रथम कोठेमें अक्षीणमहानसिक ऋद्धि तथा सर्पिरास्रव, क्षीरास्रव व अमृतानवरूप रसऋद्धियोंके धारक गणधर देवप्रमुख बैठा करते हैं ॥ ८५७ ॥
__ स्फटिकमणिमयी दीवालोंसे व्यवहित दूसरे कोठेमें कल्पवासिनी देवियां और तीसरे कोठेमें अतिशय नम्र आर्यिकायें तथा श्राविकायें बैठा करती हैं ॥ ८५८ ।।
१द हिरगणाई, ब रिहिगणाई. २ द ब मियामिवीरसओ. ३ द मणहरदेव . ४ द सावइयाओं वि विणिदाओ.।
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