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-४. ८५२ ]
उत्थो महाधियारो
[ २५५
९६० । ८४० | ७२० । ६०० | ५४० । ४८० । ४२० । ३६० । ३०० | २४० | १८० । १२० । २७ । २१ ।
दीद्दत्तरुंदमाणं ताणं संपइ पणटुउवएसं । भव्वा अभिसेयच्चणपदाहिणं तेसु कुब्वंति ॥ ८४७
। थूहा सम्मा ।
तत्तो चत्थसाला हवेइ आयासपडिहसंकासा । मरगयमणिमय गोडरदारच उक्केण रमणिज्जा ॥ ८४८ चररयणदंड मंडणभुवदंडा कप्पवासिणो देवा । जिणपादकमलभत्ता गोउरदाराणि रक्खति ॥ ८४९ सालाणं विक्खंभो कोसं चउवीस वसद्दणाहम्मि । अडसीदिदुसयभजिदा एक्कूणा जाव णेमिजिणं ॥ ८५०
२४ २३ २२ २१ २० १९ १८ १७ १६ १५ १४ १३ २८८ २८८ २८८ २८८ | २८८ | २८८ | २८८ | २८८ | २८८ | २८८ | २८८ | २८८
८
१२ ११ १० ९ ७ ६ ५ ४ ३ २८८ | २८८ | २८८ | २८८ | २८८ | २८८ | २८८ | २८८ २८८ २८८ पणवीसाधियछस्यदंडा छेत्तीससंविभत्ता य । पासम्मि वडूमाणे णवहिदपणुवीसअघिय सयं ॥ ८५१
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। तुरिमसाला समत्ता |
अह सिरिमंडवभूमी अट्ठमया अणुवमा मणोहरया । वरश्यणथंभधरिया मुत्ताजालाइ यसोहा ॥ ८५२
इन स्तूपोंकी लम्बाई और विस्तार के प्रमाणका उपदेश इस समय नष्ट होचुका है । भव्य जीव इन स्तूपोंका अभिषेक, पूजन और प्रदक्षिणा करते ह || ८४७ ॥
स्तूपोंका कथन समाप्त हुआ ।
इसके आगे आकाश-स्फटिकके ( ओला या मणि- विशेषके ) सदृश और मरकत मणिमय चार गोपुरद्वारोंसे रमणीय ऐसा चतुर्थ कोट होता है ॥ ८४८ ॥
जिनके भुजदण्ड उत्तम रत्नमय दण्डोंसे मण्डित हैं और जो जिन भगवान् के चरणकमलोंकी भक्तिसे सहित हैं ऐसे कल्पवासी देव यहां गोपुरद्वारोंकी रक्षा करते हैं ॥ ८४९ ॥
वृषभनाथ भगवान् के समवसरण में कोटका विस्तार दोसौ अठासीसे भाजित चौबीस कोसप्रमाण था | इसके आगे भगवान् नेमिनाथपर्यन्त क्रमशः एक कम होता गया है || ८५० ॥
भगवान् पार्श्वनाथके समवसरण में कोटका विस्तार बत्तीससे विभक्त छहसौ पच्चीस धनुष और वर्धमान स्वामी नौसे भाजित एकसौ पच्चीस धनुषप्रमाण था ।। ८५१ ॥ चतुर्थ कोटका वर्णन समाप्त हुआ ।
इसके पश्चात् अनुपम, मनोहर, उत्तम रत्नोंके स्तम्भोंपर स्थित और मुक्ताजालादिसे. शोभायमान आठवीं श्रीमण्डपभूमि होती है || ८५२ ॥
१ द भव्वाओ. २ ब बत्तीस ३ द ब ६२५ । ४ द मणुवमा, व मणुवमाणमणो. ५ द ब 'जालाओ कमसोहा.
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