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-४. ८२६ ]
चउत्थो महाधियारो
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पासम्मि थंभरुंदा पव्वा पणवण्ण छक्कपविहत्ता । चउदाल च्छकहिदा णिहिट्ठा वड्डमाणम्मि ॥ ८२३
२६४ | २५३ २४२) २३१ २२० २०९ १९८१८७ | १७६ १६५ १५४ १४३ |
१३२ १२१/११०/९९/८८ ७७ | ६६ ५५/४४ | ३३ / ५५ ४४
धयदंडाणं अंतरमुसहजिणे छस्सयाणि चावाणि । चउवीसेहि हिदाणिं पणकदिहीणाणि जाव णेमिजिणं ॥ ८२४
६००५७५ ५५० ५२५/ ५०० ४७५ ४५० | ४२५ | ४०० ३७५ ) ३५० ३२५/३०० २४ २४ | २४ / २४ | २४ | २४ २४ २४ / २४ २४ २४ २४ २४ २७५२५० २२५ २००१७५ १५०/१२५ १०० ७५
२४ | २४ । २४ । २४ २४ । २४ । २४ २४२४ पणुवीसअधियधणुसय अडदालहिंदं च पासणाहम्मि । वीरजिणे एक्सयं तेत्तियमेत्तेहिं अवहरिदं ॥ ८२५
| १२५ १००
। ४८ | ४८ णियणियवल्लिखिदीणं जेत्तियमेत्तो हवंति वित्थारा । णियणियधयभूमीण तेत्तियमेत्ता मुणेदवं ॥ ८२६
२६४) २५३ | २४२ | २३१/ २२० २०९ १९८ १८७/१७६ । १६५ १५४ / १४३/ २८८/ २८८ | २८८ २८८/ २८८ २८८ २८८२८८] २८८ | २८८ | २८८ | २८८ १३२/१२१/११० ९९ । ८८ । ७७ । ६६ । ५५ । ४४ । ३३ । ५५ | ४४ २८८ २८८ | २०८२८८२८८२८८ / २८८ | २८८ | २८८/२८८५७६ । ५७६
। पंचमधयभूमी सम्मत्ता ।
भगवान् पार्श्वनाथके समवसरणमें इन स्तम्भोंका विस्तार छहसे विभक्त पचवन अंगुल और वर्धमान स्वामीके छहसे भाजित चवालीस अंगुलप्रमाण बतलाया गया है ॥ ८२३ ॥
ऋषभ जिनेन्द्रके समवसरणमें ध्वजदण्डोंका अन्तर चौबीससे भाजित छहसौ धनुषप्रमाण था । फिर इसके आगे नेमिजिनेन्द्रतक भाज्य राशिमसे क्रमशः उत्तरोत्तर पांचका वर्ग अर्थात् पच्चीस पच्चीस कम होते गये हैं ॥ ८२४ ।।
____ पार्श्वनाथ तीर्थंकरके समवसरणमें इन ध्वजदण्डोंका अन्तर अड़तालीससे भाजित एकसौ पच्चीस धनुष और वीर जिनेन्द्र के समवसरणमें इतनेमात्र अर्थात् अड़तालीससे भाजित एकसौ धनुषप्रमाण था ॥ ८२५ ॥
अपनी अपनी लताभूमियोंका जितना विस्तार होता है उतना ही विस्तार अपनी अपनी ध्वजभूमियोंका भी समझना चाहिये ॥ ८२६ ॥
पंचम ध्वजभूमिका वर्णन समाप्त हुआ।
१द अडदालसहिदं च. २ द ब जेत्तियमेत्तो.
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