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तिलोयपण्णत्ती
[४. ८१७
समता।
तदियाओ वेदीओ हवंति णियबिदियवेदियाहिं समा। णवरि विसेसो एसो जक्खिदा दाररक्खणया ॥८१७
। तदिया वेदी सम्मत्ता । तत्तो धयभूमीए दिव्वधया होति तेच दसभेया । सीहगयवसहखगवइसिहिससिरविहंसपउमचक्का य ॥ ८१८ अट्टत्तरसयसहिए एक्केका तं पि अट्ठअधियसया। खुल्लयधयसंजुत्ता पत्तेकं चउदिसेसु फुडं ॥ ८१९ सुण्णअडअटणहसगचउक्कअंककमेण मिलिदाणं । सव्वधयाणं संखा एकेके समवसरणम्हि ॥ ८२०
४७०८८० । संलग्गा सयलधया कणयत्थंभेसु रयणखचिदेसुं । थंभुच्छेहो णियाणियजिणाणे उदएहिं बारसहदेहिं ॥ ८२१
६०००। ५४०० । ४८०० । ४२०० । ३६००।३००० । २४००।१८०० । १२०० । १०८०। ९६०। ८४०। ७२०। ६००। ५४०। ४८०। ४२०। ३६० । ३००।२४० ।
१८० । १२० । २७ । २१। उसहम्मि थंभरुंदं चउसट्ठीअधियदुसयपब्वाणि । तियभजिदाणिं कमसो एकरसूणाणि णेमिपरियंतं ॥ ८२२
तीसरी वेदियां अपनी अपनी दूसरी वेदियोंके समान होती हैं । केवल विशेषता यह है कि यहांपर द्वाररक्षक यक्षेन्द्र हुआ करते हैं ॥ ८१७ ॥
तृतीय वेदी समाप्त हुई । इसके आगे ध्वजभूमिमें दिव्य ध्वजायें होती हैं जो सिंह, गज, वृषभ, गरुड, मयूर, चन्द्र, सूर्य, हंस, पद्म और चक्र, इन चिह्नोंसे चिह्नित दश प्रकारकी होती हैं ॥ ८१८ ॥
___चारों दिशाओं से प्रत्येक दिशामें इन दश प्रकारकी ध्वजाओंमेंसे एक एक एकसौ आठ रहती हैं और इनमेंसे भी प्रत्येक ध्वजा अपनी एकसौ आठ क्षुद्रध्वजाओंसे संयुक्त होती हैं ॥ ८१९ ॥
शून्य, आठ, आठ, शून्य, सात, और चार, इन अंकोंके क्रमशः मिलानेपर जो संख्या उत्पन्न हो उतनी ध्वजायें एक एक समवसरणमें हुआ करती हैं ।। ८२० ॥
महाध्वजा १० x १०८४ ४ = ४३२० । क्षुद्रध्वजा १० x १०८ x १०८ ४ ४ = ४६६५६० । समस्त धजा ४३२० + ४६६५६० = ४७०८८०।
समस्त ध्वजायें रत्नोंसे खचित सुवर्णमय स्तम्भोंमें संलग्न रहती हैं। इन स्तम्भोंकी उंचाई अपने अपने तीर्थंकरोंकी उंचाईसे बारहगुणी हुआ करती है ॥ ८२१ ॥
___ भगवान् ऋषभ देवके समवसरणमें इन स्तम्भोंका विस्तार तीनसे भाजित दोसौ चौंसठ अंगुल था । फिर इसके आगे नेमिनाथपर्यन्त क्रमशः भाज्य राशिमें ग्यारह कम होते गये हैं ।। ८२२ ॥
१ ब अट्टत्तरसहिए. २ द जिणअणु'.
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