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तिलोयपण्णत्ती
[४. ७४८
चउवीसं चेय कोसा धूलीसालाण मूलवित्थारा । बारसवग्गेण हिदा मिजिणंत कमेण एक्कूणा ॥ ७४८
२४ २३/ २२ २३ २० १९ १० १७ १६ १५ १४ १३ १२ १४४१४४१४४ १४४१४४ १४४१४४ १४४ १४४ | १४४ १४४ १४४ १४५
१४४१४४१४४१४४ १४४ १४४ १४४ १४४ १४४ अडसीदिदोसएहिं भजिदा पासम्मि पंच कोसा य । एक्को य वडमाणे कोसो बाहत्तरीहरिदो ॥ ७४९
२८८ ७२ मज्झिमउवरिमभागे धूलीसालाण रुंदउवएसो । कालवसेण पणटो सेरितीरुप्पण्णविडओ व ॥ ७५०
धूलीसाला समत्ता । ताणभंतरभागे चेत्तप्पासादणामभूमीओ। वेढंति सयलैंछित्तं जिणपुरपासादसरिसाओ॥ ७५१ एककं जिणभवणं पासादा पंच पंच अंतरिदा । विविहवणसंडमंडणवरवावीकूवकमणिज्जा ॥ ७५२ जिणपुरपासादाणं उस्सेहो णियजिणिदउदएण | बारहदेण य सरिसो णटो दीदत्तवासउवदेसो ॥ ७५३
६०००। ५४००। ४८००। ४२००। ३६००।३०००।२४००।१८००। १२००।१०८० । ९६०। ८४०। ७२० । ६००। ५४०। ४८० । ४२० । ३६० । ३००।२४०।१८० । १२० । २७ । २१ ।
भगवान् ऋषभदेवके समवसरणमें धूलिसालका मूलविस्तार बारहके वर्गसे भाजित चौबीस कोसप्रमाण था। फिर इसके आगे भगवान् नेमिनाथपर्यन्त भाज्य राशिमेंसे क्रमशः एक एक कम होता गया हैं ॥ ७४८ ।।
__ भगवान् पार्श्वनाथके समवसरणमें धूलिसालका मूलविस्तार दोसौ अठासीसे भाजित पांच कोस और वर्धमान भगवान्के बहत्तरसे भाजित एक कोसप्रमाण था ॥ ७४९ ॥
धूलिसालोंके मध्य और उपरिम भागमें जो विस्तार होता है, उसका उपदेश कालवशसे नदीतीरोत्पन्न वृक्षके समान नष्ट हो गया है ॥ ७५० ।।
धूलिसालोंका वर्णन समाप्त हुआ। ___ उन धूलिसालोंके अभ्यन्तर भागमें जिनपुरसम्बन्धी प्रासादोंके सदृश चैत्य-प्रासाद नामक भूमियां सकल क्षेत्रको वेष्टित करती हैं ॥ ७५१ ॥
एक एक जिन भवनके अन्तरालसे पांच पांच प्रासाद हैं, जो विविध प्रकारके वनसमूहोंसे मण्डित और उत्तम वापिकाओं एवं कुओंसे रमणीय होते हैं ॥ ७५२ ।।
जिनपुर और प्रासादोंकी उंचाई अपने अपने तीर्थकरकी उंचाईसे बारहगुणी होती है। इनकी लम्बाई और विस्तारके प्रमाणका उपदेश नष्ट हो गया है ॥ ७५३ ॥
सा. २दब सरितीपप्पण्णविदओ व्व. ३ द व वेदंति. ४ द सयलछत्तं. ५ द व पासादसरिधाओ.
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