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________________ -४. ७५९] चउत्थो महाधियारो [२३९ • दुसयचउसटिजोयणमुसहे एकारसोणमणुकमसो' । चउवीसवग्गभजिदं णेमिजिणं जाव पढमखिदिरुदं ॥ ७५५ २६४ | २५३ | २४२ | २३१ | २२० २०९/१९८१८७/१७६ १६५/ १५४|१३/१३२ ५७६ ५७६ / ५७६ ५७६ ५७६ ५७६ ५७६/५७६ ५७६ ५७६ ५७६/५७१/५७६ १२१ ११० ९९ ८८। ७७ ६६ ५५ ४४ | ३३ | ५७६ / ५७६ ५७६ ५७६ ५७६ ५७६ | ५७६/५७६ ५७६ / पणवण्णासा कोसा पासजिणे असीदिदुसयहिदा । बावीस वीरणाहे बारसवग्गेहि पविभत्ता ॥ ७५५ का २८८२८८ । चेदियपासादभूमी सम्मत्ता । आदिमखिदीसु पुह पुह वीहीणं दोसु दोसु पासेसुं । दोद्दो णट्टयसाला वरकंचणरयणणिम्मविदा ॥ ७५६ २।२। णयसालाण पुढं उस्सेहो णियजिणंगउदएहिं । बारसहदेहिं सरिसो गट्ठा दीहत्तवासउवएसा ॥ ७५७ ६०००। ५४००। ४८०० । ४२००।३६००।३०००।२४००। १८०० । १२००।१०८० । ९६० । ८४० । ७२० । ६००। ५४० । ४८० । ४२० । ३६० । ३०० । २४० । १८०। १२० । एक्केकाए णट्टयसालाए चउहदरंगाणि । एक्कक्कस्सैि रंगे भावणकण्णाउ बत्तीसं ॥ ७५८ गायति जिणिदाणं विजयं विविहत्थदिव्वगीदेहिं । अभिणइय चणीओ खिवंति कुसुमंजलि ताशो ॥ ७५९ भगवान् ऋषभदेवके समवसरणमें प्रथम पृथिवीका विस्तार चौबीसके वर्गसे भाजित दोसौ चौंसठ योजन था। फिर इससे आगे नेमिनाथ तीर्थंकरतक भाज्य राशिमेंसे क्रमशः उत्तरोत्तर ग्यारह कम होते गये हैं ।। ७५४ ॥ पार्श्वनाथ तीर्थंकरके समवसरणमें प्रथम पृथिवीका विस्तार दोसौ अठासीसे भाजित पचवन कोस और वीरनाथ भगवान्के बारहके वर्ग अर्थात् एकसौ चवालीससे भाजित बाईस कोसप्रमाण था ॥ ७५५ ॥ चैत्य-प्रासादभूमिका कथन समाप्त हुआ । ___ प्रथम पृथिवियोंमें पृथक् पृथक् वीथियोंके दोनों पार्श्वभागोंमें उत्तम सुवर्ण एवं रत्नोंसे निर्मित दो दो नाट्यशालायें होती हैं ।। ७५६ ॥ नाट्यशालाओंकी उंचाई बारहसे गुणित अपने अपने तीर्थंकरोंके शरीरकी उंचाईके सदृश होती है तथा इनकी लम्बाई और विस्तारका उपदेश नष्ट हो गया है । ७५७ ॥ प्रत्येक नाट्यशालामें चारसे गुणित आठ अर्थात् बत्तीस रंगभूमियां और प्रत्येक रंगभूमिमें बत्तीस भवनवासीकन्यायें अभिनयपूर्वक नृत्य करती हुई नानाप्रकारके अर्थोंसे युक्त दिव्य गीतोंद्वारा तीर्थंकरोंकी विजयके गीत गाती हैं और पुष्पांजलियोंका क्षेपण करती हैं ।। ७५८-७५९ ॥ २ द वीरणाहों. ३ द एक्केकेसि, ब एक्केकसि. १ द एक्कारसाणि अणु', ब एक्कारसोण अणु': ४ द अभिण इयणिव्वणीओ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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