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चउत्थो महाधियारो
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उडुजोग्गदग्वभायणधण्णायुहतूरवस्थहम्माणि । आभरणसयलरयणा देंति कालादिया कमसो ॥७४. गोसीसमलयचंदणकालागरुपहुदिधूवगंधड्डा । एक्केकबाउलाए धूवघडो होदि एक्ककं ॥ ७४१ धूलीसालागोउरबाहिरए मयरतोरणसयाणि । अभंतरम्मि भागे पत्तेयं रयणतोरणसयाणि ॥ ७४२ गोउरदुवारमझे दोसु वि पासेसु रयणणिम्मविया । एक्कणसाला णश्चंतसुरंगणाणिवहा ॥ ७५३ धूलीसालागोउरदारेसुं चउसु होंति पत्तेक्कं । वररयणदंडहत्था जोइसिया दाररक्खणया ॥ ७४४ चउगोउरदारेसुं बाहिरअभंतरम्मि भागम्मि । सुहसुंदरसंचारा सोवाणा विविहरयणमया ॥ ७४५ धूलीसालाण पुढं णियजिणदेहोदयप्पमाणेण । चउगुणिदेणं उदो सब्वेसुं समवसरणेसुं ॥ ७४६
२०००। १८००। १६०० । १४०० । १२००। १०००। ८००।६००। ४००।३६० । ३२० । २८० । २४० । २०० । १८०। १६० । १४०। १२० । १००। ८० । ६०।१०।
९।७। तोरणउदओ अहिओ धूलीसालाण उदयसंखादो । तत्तो य सादिरेको गोउरदाराण सयलाणं ॥ ७४७
उक्त कालादिक निधियां क्रमसे ऋतुके योग्य द्रव्य ( मालादिक), भाजन, धान्य, आयुध, वादित्र, वस्त्र, महल, आभरण और सम्पूर्ण रत्नोंको देती हैं ।। ७४० ॥
एक एक पुतलीके ऊपर गोशीर्ष, मलयचन्दन और कालागरु आदिक धूपोंके गंधसे व्याप्त एक एक धूपघट होता है ॥ ७४१ ॥
धूलिसालसम्बन्धी गोपुरों के प्रत्येक बाह्य भागमें सैकड़ों मकरतोरण और अभ्यन्तर भागमें सैकड़ों रत्नमय तोरण होते हैं ।। ७४२ ॥
____ गोपुरद्वारों के बीच दोनों पार्श्वभागोंमें रत्नोंसे निर्मित, और नृत्य करती हुई देवांगनाओंके समूहसे युक्त एक एक नाट्यशाला होती है ॥ ७४३ ॥
धूलिसालके चारों गोपुरों से प्रत्येकमें, हाथमें उत्तम रत्नदण्डको लिये हुए ज्योतिष्क देव द्वाररक्षक होते हैं ॥ ७४४ ॥
चारों गोपुरद्वारों के बाह्य और अभ्यन्तर भागमें विविध प्रकारके रत्नोंसे निर्मित एवं सुखपूर्वक सुन्दर संचारके योग्य सीढ़ियां होती हैं ॥ ७४५ ॥
सब समवसरणोंमें धूलिसालोंकी उंचाई अपने अपने तीर्थंकरके शरीरके उत्सेधप्रमाणसे चौगुणी होती है ॥ ७४६ ॥
धूलिसालोंकी उंचाईकी संख्यासे तोरणोंकी उंचाई अधिक होती है और इससे भी अधिक समस्त गोपुरोंकी उंचाई होती है ॥ ७४७ ॥
१द रयणादी दंती...
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