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-४. ७३१ ]
चउत्थो महाधियारो
पणारसेहि अहियं कोसाण सयं च पासणाहम्मि । देवम्मि वडुमाणे बाणउदी भट्टतालहिदा ॥ ७२७
११५ ९२
४८ ४८
वहीदोपासेसुं णिम्मलपलिहोवलेहि' रइदाओ । दो वेदीओ वीहीदीहत्तसमाणदीहत्ता || ७२८
५५२ | ५२९ | ५०६ ४८३ | ४६० ४३७ | ४१४ ३९१ ३६८ ३४५ ३२२ | २९९ २७६ २४ २४ २४ २४ २४ २४ २४ २४ २४ २४ २४ २४ २४ २५३ | २३० २०७ १८४ १६१ १३८ ९२ ६९ ११५ ९२ २४ २४ २४ २४ २४ २४
२४ | २४ ४८ ४८
वेदीण रुंद दंडा भट्ठहरिदाणि छस्सहस्वाणि । अड्डाइज्जसएहिं कमेण हीणाणि णेमिपजंत्तं ॥ ७२९ ६००० ५७५० ५५०० ५२५० ५००० ४७५० ४५०० ४२५० ४००० ३७५०
८
८
८
८
6 ८ २७५० | २५०० ८ ८
. ८ ८ ፡ २२५० २००० १७५० १५०० ८ ८ ८
३५०० ३२५० / ३००० ८ ८
८ १०००
८
११५
२४
७५०
८
कोदंडछस्सयाइं पणवीसजुदाई भट्ठहरिदाई । पासम्मि वडमाणे पणघणदंडाणि दलिदाणि ॥ ७३०
६२५ । १२५ । २
८
अट्टा भूमीण मूले बहवा हु तोरणद्दारों । सोहियवज्जकवाडा सुरणरतिरिएहिं संचरिदा ॥ ७३१
[ २३५
१२५० ८
भगवान् पार्श्वनाथ के समवसरण में वीथियोंकी दीर्घता अडतालीस से भाजित एकसौ पन्द्रह को और वर्धमान जिनके अड़तालीससे भाजित बानबै को प्रमाण थी । ७२७ ॥ वीथियोंके दोनों पार्श्वभागों में वीथियोंकी दीर्घता के समान दीर्घतासे युक्त और निर्मल स्फटिकपाषाणसे रचित दो वेदियां होती हैं ॥ ७२८ ॥
भगवान् ऋषभदेवके समवसरणमें वेदियोंका विस्तार आठसे भाजित छह हजार धनुषप्रमाण था । पुनः इससे आगे भगवान् नेमिनाथपर्यन्त क्रमसे उत्तरोत्तर छह हजारमेंसे अढ़ाई सौ कम होते गये हैं । ७२९ ॥
भगवान् पार्श्वनाथ के समवसरण में वेदियों का विस्तार आठसे भाजित छहसौ पच्चीस धनुष और वर्धमान स्वामी के दोसे भाजित पांचके घन अर्थात् एकसौ पच्चीस धनुषप्रमाण था ॥ ७३० ॥
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आठों भूमियोंके मूल में वज्रमय कपाटोंसे सुशोभित और देव, मनुष्य एवं तिर्यश्र्चोंके संचारसे युक्त बहुतसे तोरणद्वार होते हैं ।। ७३१ ॥
१ द पलिहोवदेहि, २ द रहिदाणि ३ द अडवीसहत्ताई, व अट्टहत्थाई. ४ द ब तोरणादारा.
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