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तिलोयपण्णत्ती
[४. ७२३
चउ साला वेदीओ पंच तदंतेसु अट्ट भूमीभो । सम्वत्थंतरभागे पत्तेकं तिणि पीढाणि ॥ ७२३
सा ४ । वे ५। भू८। पी३।
। विण्णासो समत्तो। पत्तेक्वं चउसंखा वीहीओ पढमपीढपजंता । णियणियजिणसोवाणयदीहत्तणसरिसवित्थारा ॥ ७२४
२४ / २३ २२/२१/२०/१९|१८|१७|१६|१५/१४ १३/१२/११/१०/ ९
८७६ ५ ४३ ५४।
२४ | २४ २४/२४ २४ । २४/४०४८ एकेकाणं दोदो कोसा वीहीण रुंदपरिमाणं । कमसो हीण जाव य वीरजिणं के वि इच्छंति ॥ ७२५
पाठान्तरम् । च सद्देण णियसोवाणाण दीहत्तण पि । पंचसया बावण्णा कोसाणं वीहियाण दीहत्तं । चउवीसहिदा कमसो तेवीसोणा ये गेमिपजंतं ॥ ७२६
५५२ ५२९ ५०६४८३ | ४६०/४३७ ४१४३९१ ३६८ |३४५ | ३२२ २९९ | २४ । २४ २४ २४ २४ २४ । २४ | २४ । २४ | २४ । २४ । २४ २७६ २५३ २३० २०७१८४ | १६१ १३८ ११५ ९२ ६९ २४ २४ । २४ २४ २४ । २१ २४ २४ २४ २४
चार कोट, पांच वेदियां, इनके बीचमें आठ भूमियां और सर्वत्र प्रत्येक अन्तरभागमें तीन पीठ होते हैं ॥ ७२३ ॥
विन्यास समाप्त हुआ। प्रथम पीठपर्यन्त प्रत्येकमें अपने अपने तीर्थंकरके समवसरणभूमिस्थ सोपानोंकी लम्बाईके बराबर विस्तारवाली चार वीथियां होती हैं ॥ ७२४ ।।
एक एक बीथीके विस्तारका परिमाण दो दो कोस है और वीर जिनेन्द्र तक क्रमसे हीन होता गया है, ऐसा कितने ही अन्य आचार्य मानते हैं ॥ ७२५ ॥ पाठान्तर ।
च शब्दसे अपने अपने सोपानोंकी दीर्घता भी (उसी प्रकार दो दो कोस है और क्रमसे कम होती गई है, ऐसा जानना चाहिये ।)
भगवान् ऋषभदेवके समवसरणमें चौबीससे भाजित पांचसौ बावन कोसप्रमाण वीथियोंकी लंबाई थी और इसके आगे नेमिनाथपर्यन्त क्रमशः भाज्य राशि ( ५५२) मेंसे उत्तरोत्तर तेईस कम करके चौबीसका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतनी वीथियोंकी दीर्घता होती है ॥ ७२६ ॥
१द ब सम्मत्ता. २ द दो दो. ३ब केचि. ४द तेवीसा य गेमि'.
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