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-४. ६९८ ]
चउत्थो महाधियारो
[ माघस्स सुक्कबिदिये ] विसाहरिक्खे मणोहरुजाणे । अवरण्हे संजादं केवलणाणं खु वासुपुजम्मि ॥१८९ पुस्से सिददसमीए भवरण्हे तह य उत्तरासाढे । विमलजिणिदे जादं अणतणाण सहेदुगम्मि वणे ॥१९. चेत्तस्स य अमवासे रेवदिरिक्खे सहेदुगम्मि वणे । अवरण्हे संजादं केवलणाणं अणंतजिणे ॥१९ पुस्सस्स पुण्णिमाए पुस्से रिक्खे सहेदुगम्मि वणे । अवरण्हे संजादं धम्मजिणिदस्स सव्वगदं ॥ ६९२ पुस्से सुक्केयारसिभरणीरिक्खे दिणस्स पच्छिमए । चूदवणे संजाद संतिजिणेसस्स केवलं गाणं ॥ ६९३ वेत्तस्स सुक्कतदिए कित्तियरिक्खे सहेदुगम्मि वणे । अवरण्हे उप्पण्णं कुंथुजिणेसस्स केवलं गाणं ॥ ६९४ कत्तियसुक्के बारसिरेवदिरिक्खे सहेदुगम्मि वणे । अवरण्हे उप्पण्णं केवलणाणं अरजिणस्स ॥ ६९५ फग्गुणकिण्हे बारसिअस्सिणिरिक्खे मणोहरुजाणे । अवरण्हे मल्लिजिणे केवलणाण समुप्पणं ॥ ६९६ फग्गुणकिण्हे सट्टीपुरवण्हे सवणभे य णीलवणे । मुणिसुव्वयस्स जादं असहायपरकम णाणं॥३९७ चित्तस्स सुक्कतइए अस्सिणिरिक्खे दिणस्स पच्छिमए । चित्तवणे संजाद भणतणाणं णमिजिणस्स ॥ ६९८
वासुपूज्य जिनेंद्रको (माघशुक्ला द्वितीयाके दिन ) अपराह्न कालमें विशाखा नक्षत्रके रहते मनोहर उद्यान में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ॥ ६८९ ॥
विमलनाथ जिनेन्द्रके पौषशुक्ला दशमीको अपराह्न कालमें उत्तराषाढा नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें अनन्तज्ञान उत्पन्न हुआ ॥ ६९०॥
भगवान् अनन्तनाथके चैत्रमासकी अमावस्याको अपराल कालमें रेवती नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ॥ ६९१ ॥ ।
धर्मनाथ जिनेन्द्रको पौष मासकी पूर्णिमाके दिन अपराह्न समयमें पुष्य नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें सर्व पदार्थों को अवगत करनेवाला केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ॥ ६९२ ॥
शान्ति जिनेशको पौषशुक्ला एकादशीके दिन दिवसके पश्चिम भागमें भरणी नक्षत्रके रहते आम्रवनमें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ॥ ६९३ ॥
कुंथुनाथ जिनेन्द्रको चैत्रशुक्ला तृतीयाके दिन अपराह्न कालमें कृत्तिका नक्षत्रके रहते सहेतुक वन में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ॥ ६९४ ॥
____ अरनाथ जिनेन्द्रको कार्तिक शुक्ला द्वादशीके अपराह्न कालमें रेवती नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ॥ ६९५ ॥
__ भगवान् मल्लिनाथको फाल्गुन कृष्णा द्वादशीके अपराह्न कालमें अश्विनी नक्षत्रके रहते मनोहर उद्यान में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ॥ ६९६ ॥
मुनिसुव्रतनाथ तीर्थकरको फाल्गुनकृष्णा षष्ठीके पूर्वाह्न समयमें श्रवण नक्षत्रके रहते नीलवनमें असहायपराक्रमरूप केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ।। ६९७ ॥
नमिनाथ जिनको चैत्रशुक्ला तृतीयाको दिनके पश्चिम भागमें अश्विनी नक्षत्रके रहते चित्रवनमें अनन्तज्ञान उत्पन्न हुआ ॥ ६९८ ॥
१. जिणंदे. २ ब 'जिनंदस्स. ३ द सुकेबारसि. ४ द क संजादो.
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