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तिलोयपण्णत्ती
[ ४. ६८०
पुस्सस्स सुक्कचोद्दसिअवरण्हे रोहिणिम्मि णक्खत्ते । अजियजिणे उप्पणं अणतणाणं सहेदुगम्मि वणे ॥६८० कत्तियसुक्के पंचमिअवरण्हे पुणब्वसुम्मि णक्खत्ते । उग्गवणे अभिणंदणजिणस्स संजाद सम्वगयं ॥ ६८१ पुस्सस्स पुणिमाए रिक्खम्मि करे सहेदुगम्मि वणे। अवरण्हे उप्पणं सुमइजिणे केवलं जाणं ॥ ६८२ वइसाहसुक्कदसमीचेत्तारिक्खे मणोहरुजाणे । अवरण्हे उप्पण्णं पउमप्पहजिणवरिंदस्स ॥ ६८३ फग्गुणकसिणे सत्तमिविसाहरिक्खे सहेदुगम्मि वणे । अवरण्हे असवैत्तं सुपासणाहस्स संजादं ॥ ६८४ तदिवसे अणुराहे सव्वस्थवणे दिणस्स पच्छिमए । चंदप्पहजिणणाहे संजादं सव्वभावगदं ॥ ६८५ कत्तियसुक्के तइए अवरण्हे मूलभे य पुप्फवणे । सुविहजिणे उप्पण्णं तिहुवणसंखोभयं गाणं ॥ ६८६ पुस्सस्स किण्हचोदसिपुवासाढे दिणस्स पच्छिमए । सीयलजिणस्स जादं अणतणाणं सहेदुगम्मि वणे ॥ ६८७ माघस्स य अमवासे [ सवणे रिक्खे मणोहरुजाणे । अवरण्हे संजाद सेयंसजिणस्स केवलयं ॥ ६८८]
अजित जिनेन्द्रको पौषशुक्ला चतुर्दशीके अपराह्न समयमें रोहिणी नक्षत्रके रहते सहेतुकवनमें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ॥ ६८० ॥
[संभवनाथ जिनेन्द्रको कार्तिककृष्णा पंचमीके अपराह्न कालमें ज्येष्ठा नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ॥ ६८०*१॥]
____ अभिनन्दन जिनेन्द्रको कार्तिक शुक्ला पंचमीके अपराह्न कालमें पुनर्वसु नक्षत्रके रहते उप्रवनमें सर्वगत अर्थात् केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ।। ६८१ ।।
सुमति जिनेन्द्रको पौष मासकी पूर्णिमाके अपराह्न कालमें हस्त नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ॥ ६८२ ॥
पद्मप्रभ जिनेन्द्रको वैशाखशुक्ला दशमीके अपराल कालमें चित्रा नक्षत्रके रहते मनोहर उद्यानमें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ॥ ६८३ ॥
सुपार्श्वनाथ स्वामीको फाल्गुनकृष्णा सप्तमीके अपराह्न कालमें विशाखा नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें असपत्न अर्थात् केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था ॥ ६८४ ॥
चन्द्रप्रभ जिनेन्द्रको उसी दिन अर्थात् फाल्गुन कृष्णा सप्तमीको दिनके पश्चिम भागमें अनुराधा नक्षत्रके रहते सर्वार्थ वनमें सम्पूर्ण पदार्थोंको अवगत करनेवाला केवलज्ञान उत्पन्न हुआ॥ ६८५ ॥
सुविधिनाथ तीर्थंकरको कार्तिक शुक्ला तृतीयाके दिन अपराह्न कालमें मूल नक्षत्रके रहते पुष्पवनमें तीनों लोकोंको क्षोभित करनेवाला केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ॥ ६८६ ॥
शीतलनाथ तीर्थंकरको पौषकृष्णा चतुर्दशीको दिनके पश्चिम भागमें पूर्वाषाढा नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें अनन्तज्ञान उत्पन्न हुआ ॥ ६८७ ॥
श्रेयांस जिनेन्द्रको माघ मासकी अमावस्याके दिन ( अपराह कालमें श्रवण नक्षत्रके रहते मनोहर उद्यानमें केवलज्ञान प्राप्त हुआ )॥६८८ ॥
१द रिक्वंमि रके. २दर अवसत्तं.
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