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-४.६६५]
चउत्थो महाधियारो
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'माघस्स सिदचउत्थीमवरण्हे तह सहेदुगम्मि वणे । उत्तरभद्दपदाणं विमलो णिकमह तदियउववासे ॥ ६५६
जेटस्स बहुलबारसिमवरण्हे रेवदीसु खवणतिए । धरिया सहेदुगवणे अणंतदेवेण तवलच्छी॥ ६५७ सिदतेरसिअवरण्हे भद्दपदे पुस्सभम्मि खवणतिए । णमिऊणं सिद्धाणं सालिवणे णिकमइ धम्मो ॥ ६५८ जेटस्स बहुलचोत्थीभवरण्हे भरणिभम्मि चूदवणे । पडिवजदि पध्वज संतिजिणो तदियउववासे ॥ ६५९ वइसाहसुद्धपाडिवभवरण्हे कित्तियासु खवणतिए । कुंथू सहेदुगवणे पम्वजिओ पणमिऊण सिद्धाणं ।। ६६० मग्गसिरसुद्धदसमीअवरण्हे रेवदीसु अरदेओ । तदियखवणाम्म गेण्हदि जिणिंदरूवं सहेदुगम्मि वणे ॥ ६६१ मग्गसिरसुद्धएक्कारसिए तह अस्सिणीसु पुवण्हे । धेरदि तवं सालिवणे मल्ली छ?ण भत्तेण ॥ ६६२ वइसाहबहुलदसमीअवरण्हे समणभम्मि णीलवणे । उववासे तदियम्मि य सुव्वदेदेवो महावदं धरदि ॥ ६६३ आसाढबहुलदसमीअवरण्हे अस्सिणीसु चेतवणे । णमिणाहो पग्वज पडिवजदि तदियखवणम्हि ॥ ६६४ चेत्तासु सुद्धसट्टीअवरण्हे सावणम्मि मिजिणो। तदियखवणाम्म गिण्हदि सहकारवणम्मि तवचरणं॥६६५
विमलनाथ स्वामीने माघशुक्ला चतुर्थीको अपराह्न कालमें उत्तर भाद्रपद नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें तृतीय उपवासके साथ दीक्षा ग्रहण की ॥ ६५६ ॥
भगवान् अनन्तनाथने ज्येष्ठकृष्णा द्वादशीके दिन अपराह्न कालमें रेवती नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें तृतीय उपवासके साथ तपोलक्ष्मी धारण की ॥ ६५७ ॥
___ धर्मनाथ तीर्थकरने भाद्रपदशुक्ला त्रयोदशीको अपराह्न कालमें पुष्य नक्षत्रके रहते शालिवनमें तृतीय उपवासके साथ सिद्धोंको नमस्कार कर जिनदीक्षा ग्रहण की ॥ ६५८॥
शान्तिनाथ जिनेन्द्रने ज्येष्ठकृष्णा चतुर्थी (? चतुर्दशी ) क दिन अपराह्न कालमें भरणी नक्षत्रके रहते आम्रवनमें तृतीय उपवासके साथ जिनदीक्षा धारण की ॥ ६५९ ॥
__ भगवान् कुंथुनाथ वैशाखशुक्ला प्रतिपको अपराह्न कालमें कृत्तिका नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें तृतीय भक्तके साथ सिद्धोंको प्रणाम कर दीक्षित हुए ॥ ६६० ॥
___ अरनाथ तीर्थकरने मगसिरशुक्ला दशमीके दिन अपराह्न समयमें रेवती नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें तृतीय भक्तके साथ जिनेन्द्ररूपको ग्रहण किया ॥ ६६१ ॥
मल्लि जिनेन्द्रने मगसिरशुक्ला एकादशीके दिन पूर्वाह्नमें अश्विनी नक्षत्रके रहते शालि वनमें षष्ठभक्त के साथ तपको धारण किया ॥ ६६२ ॥
. सुव्रत देवने वैशाखकृष्णा दशमीको अपराह्न कालमें श्रवण नक्षत्रके रहते नीलवन में तृतीय उपवासके साथ महाव्रतोंको धारण किया ॥ ६६३ ॥
नमिनाथ भगवान्ने आषाढकृष्णा दशमीके दिन अपराह्न कालमें अश्विनी नक्षत्रके रहते चैत्रवनमें तृतीय भक्तके साथ दीक्षा स्वीकार की ॥ ६६४ ॥
भगवान् नेमिनाथने श्रावणशुक्ला षष्ठीको चित्रा नक्षत्रके रहते सहकार वनमें तृतीय भक्तके साथ तपको ग्रहण किया ॥ ६६५॥
१ द व चोत्ती. २ व सिद्धाणां. ३ द धरिदि,व धरिद. ४ द ब मलिं.५ दब देवा. ६ द TP. 29
चेतवणे.
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