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________________ २२६ ] तिलोयपण्णत्ती [ ४. ६६६ माघस्सिदएकारसिपुग्वण्हे गेण्हदे विसाहासु । पन्वजं पासजिणो अस्सत्थवणम्मि छट्ठभत्तेण ॥ ६६६ ममासिरबहुलदसमीभवरण्हे उत्तरासु णाधवणे । तदियखवणम्मि गहिदं महन्वदं वडमाणेण ॥ ६६७ पवाजिदों मल्लिजिणो रायकुमारहिं तिसयमेत्तेहिं । पासजिणो वि तह श्चिय एक जिणो॥६६८ 'मल्लि ३००। पास ३००। वीर । छावत्तरिजुदछस्सयसंखेहिं वासुपुज्जसामी य । उसहो तालसएहिं सेसा पुह पुह सहस्समेत्तेहिं ॥ ६६९ __ वासु ६७६ । उसह ४००० । सेसे १०००। णेमी मल्ली वीरो कुमारकालम्मि वासुपुज्जो य । पासो वि य गहिदतवा सेसजिणा रजचरमम्मि ॥ ६७० एकवरिसण उसहो उच्छरसं कुणइ पारणं अवरे । गोखीरे णिप्पण्णं अण्णं बिदियम्मि दिवसम्मि ॥ ६७१ सव्वाण पारणदिणे णिवडइ वररयणवरिसमंबरदो। पणघणहददहलक्खं जेटुं भवरं सहस्सभागं च ॥ ६७२ दत्तिविसोहिविसेसोब्भेदणिमित्तं खु रयणमल्लीए । वायंति दुंदुहीओ देवा जलदेहि अंतरिदा ॥ ६७३ पार्श्वनाथ जिनेन्द्रने माघशुक्ला एकादशीको पूर्वाह्न कालमें विशाखा नक्षत्रके रहते षष्ठ भक्तके साथ अश्वत्थ वनमें दीक्षाको ग्रहण किया ॥ ६६६ ॥ वर्धमान भगवान्ने मगसिरकृष्णा दशमीके दिन अपराह्न कालमें उत्तरा नक्षत्रके रहते नाथवनमें तृतीय भक्तके साथ महाव्रतोंको ग्रहण किया ॥ ६६७ ॥ भगवान् मल्लिनाथ तीनसौ राजकुमारोंके साथ दीक्षित हुए। पार्श्वनाथ भी उतने ही अर्थात् तीनसौ राजकुमारोंक साथ, तथा वर्धमान जिनेन्द्र अकेले ही दीक्षित हुए ॥ ६६८ ॥ मल्लि ३०० । पार्श्व ३०० । वीर १।। वासुपूज्य स्वामी छहसौ छयत्तर, ऋषभनाथ चालीससौ, और शेष तीर्थकर पृथक् पृथक् एक हजार राजकुमारोंके साथ दीक्षित हुए ॥ ६६९ ॥ वासु० ६७६ । ऋषभ ४००० । शेष १००० । भगवान् नेमिनाथ, मल्लिनाथ, महावीर, वासुपूज्य और पार्श्वनाथ, इन पांच तीर्थंकरोंने कुमारकालमें, और शेष तीर्थंकरोंने राज्यके अन्तमें तपको ग्रहण किया ॥ ६७० ॥ भगवान् ऋषभदेवने एक वर्षमें इक्षुरसकी पारणा की थी और इतर तीर्थंकरोंने दूसरे दिन गोक्षीरमें निष्पन्न अन्न अर्थात् खीरकी पारणा की थी ॥ ६७१ ॥ पारणाके दिन सब दाताओंके यहां आकाशसे उत्तम रत्नोंकी वर्षा होती है, जिसमें अधिकसे अधिक पांचके घनसे गुणित दश लाखप्रमाण अर्थात् साढ़े बारह करोड और कमसे कम इसके हजारवें भागप्रमाण रत्न बरसते ह ॥ ६७२ ॥ ___ दानविशुद्धिकी विशेषताको प्रकट करने के निमित्त देव मेघोंसे अन्तर्हित होते हुए रत्नवृष्टिपूर्वक दुंदुभी बाजोंको बजाते हैं ॥ ६७३ ॥ १ द उत्तरासुणाधरणे, ब उत्तरासुणापवणे. २ ब पव्वजिदो, ३ ब वडमाणजिणे. ४ द गोखीरे. ५ [ तिदियमि].६ दब पणपणहद'. ... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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