SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 291
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२० तिलोयपण्णत्ती [ ४. ६४६-- मम्गसिरपुग्जिमाए तदिए पहरम्मि तदियउववासे । जेट्टाए णिकंतो संभवसामी सहेदुगम्मि वणे ॥ ६४६ सिदवारसिपुष्वन्हे माधे मासे पुणव्वसूरिक्खे । उग्गवणे उबवासे तदिए अभिणंदणो य णिकतो ॥ ६४७ णवमीए पुवण्हे मघासु वहसाहसुकपक्खम्मि । सुमई सहेदुगवणे णिकतो तदियउववासे ॥ ६४८ चेत्तासु किण्हतेरसिअवरण्हे कत्तियस्से णिकतो । पउमप्पहो जिणिंदो तदिए खवणे मणोहरूजाणे ॥६४९ सिदवारसिपुष्वण्हे जेट्टस्स विसाहमम्मि जिणदिक्खं । गेण्हेदि तदियखवणे सुपासदेवो सहेदुगम्मि वणे ॥६५० अणुराहाए पुस्से बहुले एयारसीए अवरण्हे । चंदपही धरइ तवं सब्वत्थवणम्मि तदियउववासे ॥ ६५, अणुराहाए पुस्से सिदपक्खेकारसीए अवरण्हे । पम्वजिओ पुष्फवणे तदिए खवणम्मि पुष्फयंतजिणो ॥ ६५२ माघस्स किण्हबारसिअवरण्हे मूलभम्मि पम्वज्जा । गहिया ये सहेदुवणे सीयलदेवेण तदियउववासे ॥६५३ एक्कारसिपुठवण्हे फग्गुणबहुले मणोहरुजाणे । सवणम्मि तदियखवणे सेयंसो धरइ जिणदिक्खं ॥ ६५४ फग्गुणकसणचउइसिमवरण्हे वासुपुजतवगहणं । रिक्खम्मि विसाखाए इगिउववाले मणोहरुजाणे ॥ ६५५ सम्भवनाथ स्वामीने मगसिर मासकी पूर्णिमाको तृतीय पहरमें ज्येष्ठा नक्षत्रके रहते सहेतुक बनमें तृतीय उपवासके साथ दीक्षा ग्रहण की ॥ ६४६ ॥ __ अभिनन्दन भगवान्ने माघशुक्ला द्वादशीके दिन पूर्वाह्न कालमें पुनर्वसु नक्षत्रके रहते उप्रवनमें तृतीय उपवासके साथ दीक्षा धारण की ।। ६४७ ।। भगवान् सुमतिनाथ वैशाख शुक्ला नवमीको पूर्वाह्न कालमें मघा नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें तृतीय उपवासके साथ दीक्षित हुए ॥ ६४८॥ । पद्मप्रभ जिनेन्द्र कार्तिककृष्णा त्रयोदशीके अपराह्न समयमें चित्रा नक्षत्रके होते हुए मनोहर उद्यानमें तृतीय भक्तके साथ दीक्षित हुए ॥ ६४९ ॥ . भगवान् सुपार्श्वनाथने ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशीको पूर्वाह्न कालमें विशाखा नक्षत्रके रहते सहेतुकवनमें तृतीय उपवासके साथ जिनदीक्षा ग्रहण की ॥ ६५० ॥ ___ चन्द्रप्रभ भगवान्ने पौषकृष्णा एकादशीके दिन अपराह्न कालमें अनुराधा नक्षत्रके रहते तृतीय उपवासके साथ सर्वार्थवनमें तपको धारण किया ॥ ६५१ ॥ ___ पुष्पदन्त तीर्थकर पौषशुक्ला एकादशीको अपराह्न समयमें अनुराधा नक्षत्रके रहते पुष्पवन में तृतीय भक्तके साथ दीक्षित हुए ॥ ६५२ ॥ ___ शीतलनाथ स्वामीने माघकृष्णा द्वादशीके दिन अपराह्न समयमें मूल नक्षत्रके होते हुए सहेतुक वनमें तृतीय उपवासके साथ प्रवृज्या ( दीक्षा ) ग्रहण की ॥ ६५३ ॥ भगवान् श्रेयांसने फाल्गुनकृष्णा एकादशीको पूर्वाह्न समयमें श्रवण नक्षत्रके रहते मनोहर उद्यानमें तृतीय भक्तके साथ जिनदीक्षा धारण की ॥ ६५४ ॥ वासुपूज्य जिनेन्द्रने फाल्गुन कृष्णा चतुर्दशीकै दिन अपराह्न कालमें विशाखा नक्षत्रके रहते ममोहर उद्यानमें एक उपवासके साथ तप ग्रहण किया ।। ६५५ ॥ १२ णिकता. २ ब कित्तियस्स. ३ द ब चंदप्पह. ४ द व पवज्जिय. ५ द किण्हे. ६ द व र. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy