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________________ २१२ ] तिलोयपण्णत्ती [४.५६० दसपुव्वलक्खसंजुदसायरणवकोडिसयविरामम्मि । चंदप्पहउप्पत्ती उप्पत्तीदो सुपासस्स ॥ ५६० सा ९००००००००० पुव्व १००००००। अडलक्खपुष्वसमधियसायरकोडीण णउदिविच्छेदे। चंदपहुष्पत्तीदो उप्पत्ती पुष्पदंतस्स ॥ ५६१ सा ९०००००००० पुष ८०००००। इगिपुग्वलक्खसमाधियसायरणवकोडिमेत्तकालाम्म । गलियम्मि पुप्फदंतुप्पत्तीदो सीयलुप्पत्ती ॥ ५६२ सा ९००००००० पुब्व १०००००। इगिकोडिपण्णलक्खाछन्वीससहस्सवासमेत्ताए । अब्भहिएणं जलणिहिउवमसयेणं विहीणाए ॥ ५६३ वोलीणाए सायरकोडीए पुटवलक्खजुत्ताए । सीयलसंभूदीदो सेयंसजिणस्स संभूदी ॥ ५६४ सा १००००००० पुब्व १००००० रिण सागरोपम १०० व १५०२६०००। बारसहदइगिलक्खब्भहियाए वासउवहिमाणेसु । चउवण्णेसु गदेसु सेयंसभवादु वासुपुजभवो ॥ ५६५ सा ५४ वस्स १२०००००। तीसोवहीण विरमे बारसहदवरिसलक्खअधियाणं । जाणेज वासपुज्जुप्पत्तीदो' विमलउप्पत्ती ॥ ५६६ सा ३० वस्स १२०००००। उवहिउवमाणणवके तियहददहलक्खवासअदिरित्ते । वोलीणे विमलजिणुप्पत्तीदो तह अणंतउम्पत्ती ॥ ५६७ सा ९ वस्स ३००००००। सुपार्श्वनाथकी उत्पत्तिके पश्चात् दश लाख पूर्व सहित नौसौ सागरोपमोंके बीत जाने पर चन्द्रप्रभ जिनेन्द्रकी उत्पत्ति हुई ॥ ५६० ॥ सा० ९ सौ करोड़ + वर्षपूर्व १० लाख । चन्द्रप्रभकी उत्पत्तिसे आठ लाख पूर्व सहित नब्बै करोड़ सागरोपमोंका विच्छेद होनेपर भगवान् पुष्पदन्तकी उत्पत्ति हुई ॥ ५६१ ॥ सा० ९० करोड़ + वर्षपूर्व ८ लाख । पुष्पदन्तकी उत्पत्तिके अनन्तर एक लाख पूर्व सहित नौ करोड सागरोपमोंके बीतनेपर शीतलनाथ तीर्थकरने जन्म लिया ॥ ५६२ ॥ सा० ९ करोड + वर्षपूर्व १ लाख । ___शीतलनाथकी उत्पत्तिके पश्चात् सौ सागरोपम और एक करोड़ पचास लाख छब्बीस हजार वर्ष कम एक लाख पूर्व सहित करोड़ सागरोपमोंके अतिक्रान्त होने पर श्रेयांस जिनेन्द्र उत्पन्न हुए ॥ ५६३-५६४ ।। ( सा० १ करोड + वर्षपूर्व १ लाख )-(सा० १००, वर्ष १५०२६०००)। __भगवान् श्रेयांसकी उत्पत्तिके पश्चात् बारह लाख वर्ष सहित चौवन सागरोपमोंके व्यतीत हो जाने पर वासुपूज्य तीर्थंकरने अवतार लिया ॥ ५६५ ॥ सा० ५४, वर्ष १२ लाख । वासुपूज्य भगवान्की उत्पत्तिके अनन्तर बारह लाख वर्ष अधिक तीस सागरोपमोंके बीतनेपर विमलनाथ तीथकरकी उत्पत्ति जानना चाहिये ।। ५६६ ॥ सा० ३०, वर्ष १२ लाख । विमल जिनकी उत्पत्तिके पश्चात् तीस लाख वर्ष अधिक नौ सागरोपमोंके व्यतीत होजाने पर भगवान् अनन्तनाथ उत्पन्न हुए ॥ ५६७ ।। सा० ९, वर्ष ३० लाख | १द विच्छेदो. २ दबचंदप्पह उप्पत्तीदो.३द पंचलक्खा. ४ दब भवा. ५द वासुपुज्जुप्पत्तीदा. ६दब अधिरित्तो. ७द "जिणुप्पत्तीदा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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