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________________ २०४] तिलोयपण्णत्ती [ ४. ४८९ मरुदेवे तिदिवगदे भडकोडीलक्खभाजिदपल्लम्मि । अंतरिदे उप्पज्जदि पसेणजिण्णाम तेरसमो॥ ४८९ चामीयरसमैवण्णो दसहदपणवण्णचावउच्छेहो । दसकोडिलक्खभाजिदपलिदोवममेत्तपरमाऊ ॥ ४९० ५५०। १००००००००००.०० अभिदमदी तद्देवी तक्काले वत्तिपडलपरिवेढे।। जायता जुगबाला देक्खिय भीदा किमेदमिदि ॥ ४९१ भयजुत्ताण णराणं पसेणजिब्भणदि दिव्वउवदेसं । वत्तिपंडलावहरण कहिदम्मि कुणंति ते सव्वे ॥ ४९२ पेच्छंते बालाणं मुहाणि य विसट्टकमलसरिसाणि । कुवंति पयत्तेण सिसूण रक्खा जरा सब्वे ॥ ४९३ तम्मणुतिदिवपवेसे कोडिहदासीदिलक्खहिदपल्ले । अंतरिदे संभूदो चोद्दसमो णाभिराजमण ॥ ४९४ पणुवीसुत्तरपणसयचाउच्छेहो सुवण्णवण्णणिहो । इगिपुव्वकोडिआऊ मरुदेवी णाम तस्स वधू ॥ ४९५ दं ५२५ । पूर्वकोटि १ आउ । ८०००००००००० मरुदेवके स्वर्गस्थ हो जाने पर आठ लाख करोडसे भाजित पल्यप्रमाण अन्तरालके पश्चात् प्रसेनजित् नामक तेरहवां कुलकर उत्पन्न होता है ॥ ४८९ ॥ प. १ वह कुलकर सुवर्णके सदृश वर्णसे युक्त, दशसे गुणित पचवन अर्थात् पांचसौ पचास धनुषप्रमाण ऊंचा, और दश लाख करोड़से भाजित पल्योपमप्रमाण आयुवाला हुआ ॥ ४९० ॥ उंचाई दं० ५५०; आयु प... ......।। उसके अमितमती नामक देवी थी। इसके समयमें वर्तिपटल ( जरायु ) से वेष्टित युगल बालकोंको जन्म लेते देखकर ' यह क्या है ? ' इसप्रकार भयसे संयुक्त मनुष्योंको प्रसेनजित् कुलकर वर्तिपटलके दूर करनेका दिव्य उपदेश देते हैं । तब उनके कथनानुसार वे सब मनुष्य वर्तिपटलको दूर करने लगे ॥ १९१-४९२ ॥ ___तथा, सब भोगभूमिज मनुष्य विकसित कमलके सदृश बालकोंके मुखोंको देखने और प्रयत्नपूर्वक उन शिशुओंकी रक्षा करने लगे ।। ४९३ ॥ उस मनुके स्वर्गस्थ होनेपर अस्सी लाख करोडसे भाजित पल्यप्रमाण कालके अन्तरालसे चौदहवें नाभिराय मनु उत्पन्न हुए ॥ ४९४ ॥ प. वह पांचसौ पच्चीस धनुष ऊंचा, सुवर्णके सदृश वर्णवाला, और एक पूर्वकोटिप्रमाण आयुसे युक्त था । उसके मरुदेवी नामकी पत्नी थी ॥ ४९५ ॥ ऊंचाई दं० ५२५; आयु पूर्वकोटि १ । ८०००००००००००००। १६पसेणदिण्णाम. २ दबसमधण्णा. ३ दब परिवेदा.४दवनायंति. ५ ब वित्ति'. ६ द बमुहाणि बसट्ट'. ७ द व तिदव'. ८ द ब अंतरिदो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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