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________________ -४. ४८८] चउत्थो महाधियारो [ २०३ कालस्स विकारादो एस सहाओ पयट्टदे णियमा । णासह तुसारमेयं एम्हि मत्तंडकिरणेहिं ॥ ४८० सादण तस्स वयण ते सन्चे भोगभूमिजा मणुवा । रविकरणासिदेसीदा पुत्तकलत्तेहिं जीवंति॥४८१ चंदाभे सग्गगदे सीदिसहस्सहिं गुणिदकोडिहिदे । पल्ले गयम्मि जम्मइ मरुदेवो णाम बारसमो॥ ४८२ पंचसया पण्णत्तरिसहिदा चावाणि तस्स उच्छेहो । इगिलक्खकोडिभजिदं पलिदोवममाउपरिमाणं ॥ ४८३ ५७५।१०००००००००० कंचणणिहस्स तस्स य सखा णामेण अणुवमा देवी। तकाले गज्जंता मेघा बरिसंति तडिवंता ॥ ४८४ कद्दमपवहणदीमो भदिट्टपुरवाओ ताव दट्टणं । भदिभीदाण णराणं कालविभागं भणेदि मरुदेवो ॥ ४८५ कालस्स विकारादो आसण्णा होदि तुम्ह कम्ममही । णावादीणि" णदीणं उत्तारह भूधरेसु सोवाणं ॥ ४८६ कादूण चलह तुम्हे पाउसकालम्मि धरह छत्ताई। सोदण तस्स वयणं सब्बे ते भोगभूमिणरा ॥ ५८७ उत्तरिय वाहिणीभो मारुहिऊणं च तुंगसेलेसुं । विणिवारिदवरिसामो पुत्तकलसहि जीवंति ॥ ४८८ ०००००००००००। ____ कालके विकारस नियमतः यह स्वभाव प्रवृत्त हुआ है । अब यह तुषार सूर्यकी किरणोंसे नष्ट होगा ॥ ४८० ॥ उस कुलकरके वचनोंको सुनकर वे सब भोगभूमिज मनुष्य सूर्यकी किरणोंसे शैत्यको नष्ट करते हुए पुत्र-कलत्रके साथ जीवित रहने लगे ॥ ४८१ ॥ चन्द्राभ कुलकरके स्वर्ग जानेपर अस्सी हजार करोडसे भाजित पल्यके व्यतीत होनेपर मरुदेव नामक बारहवें कुलकरने जन्म लिया ॥ ४८२ ॥ प. __ उसके शरीरकी उंचाई पांचसौ पचत्तर धनुष और आयु एक लाख करोडसे भाजित पल्योपमप्रमाण थी।। ४८३ ॥ उर्चाई दं. ५७५; आयु प. १ सुवर्ण जैसी प्रभावाले उस कुलकरके सत्या नामकी अनुपम देवी थी। उसके समयमें बिजलीयुक्त मेघ गरजते हुए बरसने लगे ॥ ४८४ ॥ उस समय पूर्वमें कभी नहीं देखी गयीं कीचडयुक्त जलप्रवाहवाली नदियोंको देखकर अत्यन्त भयभीत हुए भोगभूमिज मनुष्योंको मरुदेव कालके विभागको प्ररूपित करता है ॥ ४८५ ॥ कालके विकारसे अब कर्मभूमि तुम्हारे निकट है। अब तुम लोग नदियों में नौका आदि डालकर उन्हें पार करो, पहाड़ोंपर सीढ़ियोंको रचकर चलो, और वर्षाकालमें छत्रादिकको धारण करो। उस कुलकरके वचन सुनकर वे सब भोगभूमिज मनुष्य नदियोंको उतरकर और ऊंचे पहाड़ोंपर चढ़कर, वर्षाका निवारण करते हुए पुत्र एवं कलत्रके साथ जीवित रहने लगे ॥४८६-४८८॥ .... १ द व रविकिरणासदसीदोः-२ द ब लाव. ३. द ब च णेदि. ४ द ब णावादीण. ५ द ब तुम्हो. ६ द ब छत्ताहिं. ७ द व तुरंगसेलेसुं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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