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________________ -४. ३९० ] चउत्थो महाधियारो [ १९१ जादिभरणेण केई केई पडिबोहणेण देवाणं। चारणमुणिपहदीणं सम्मत्तं तत्थ गेण्हति ॥३८१ देवीदेवसरिच्छा बत्तीसपसत्थलक्खणेहि जुदा । कोमलदेहाविहुणो समचउरस्संगसंठाण॥ ३८२ धादुमयंगा वि तहा छेत्तुं भेत्तुं च किर णे सक्का । असुचिविहीणत्तादो मुत्तपुरीसासवो णस्थि ।। ३८३ ताण जुगलाण देहा अब्भंगुव्वदृणंजणविहीणा । मुहदंतणयणधोवणणहकहणविरहिदा वि रेहति ॥ ३८४ अक्खरआलेक्खेसुं गणिदे गंधवसिप्पपहुदीसुं। ते चउसट्ठिकलासुं होंति सहावेण णिउणयरा ॥ ३८५ ते सव्वे वरजुगला अण्णोण्णुप्पण्णपेमसंमूढा । जम्हा तम्हा तेसु सावयवदसंजमो णस्थि ॥ ३८६ कोइलमहुरालावा किण्णरकंठा हुवंति ते जुगला । कुलजादिभेदहीणा सुहसत्ता चत्तदारिद्दा ॥ ३८७ तिरिया भोगखिदीए जुगला जुगला हुवंति वरवण्णा । सरला मंदकसाया णाणाविहजादिसंजुत्ता ॥ ३८८ गोकेसरिकरिमयरा सूवरसारंगरोज्झमहिसवया। वाणरगवयतरच्छा वधूसिगालच्छभल्ला य ॥ ३८९ कुक्कुडकोइलकीरा पारावदरायहंसकोरंडा । वरकाककोंचकंजकपहुदीओ होंति अण्णे वि ॥ ३९० वहाँपर कोई जीव जातिस्मरणसे, कोई देवोंके प्रतिबोधित करनेसे, और कोई चारणमुनि आदिकके सदुपदेशसे सम्यक्त्वको ग्रहण करते हैं ॥ ३८१ ॥ वे भोगभूमिज जीव देव-देवियोंके सदृश बत्तीस प्रशस्त लक्षणोंसे सहित, सुकुमार देहरूप विभवके धारक, समचतुरस्रसंस्थानसे संयुक्त होते हैं और उनका शरीर धातुमय होते हुए भी छेदा भेदा नहीं जा सकता । एवं अशुचित्वसे रहित होनेके कारण इनके शरीरमें मूत्र व विष्टाका आस्रव नहीं होता ॥ ३८२-३८३ ॥ उन युगल नर-नारियोंके शरीर तैलमर्दन, उवटन और अंजनसे तथा मुख, दांत एवं नेत्रोंके धोने व नाखूनोंके काटनेसे रहित होते हुए भी शोभायमान होते हैं ॥ ३८४ ॥ वे अक्षर, चित्र, गणित, गंधर्व और शिल्प इत्यादि चौंसठ कलाओंमें स्वभावसे ही अतिशय निपुण होते हैं ॥ ३८५ ॥ क्योंकि ये सब उत्तम युगल पारस्परिक प्रेममें अत्यन्त मुग्ध रहा करते हैं, इसीलिये उनके श्रावकके व्रत और संयम नहीं होता ॥ ३८६ ।। वे नर-नारीयुगल कोयलके समान मधुरभाषी, किन्नरके समान कंठवाले, कुल-जातिके भेदसे रहित, सुखमें आसक्त, और दारिद्रयसे रहित होते हैं ॥ ३८७ ॥ भोगभूमिमें उत्तम वर्णविशिष्ट, सरल, मन्दकषायी और नाना प्रकारकी जातियोंवाले तिर्यश्च जीव युगल-युगलरूपसे होते हैं ॥ ३८८ ॥ भोगभूमिमें गाय, सिंह, हाथी, मगर, शूकर, सारंग, रोझ ( ऋश्य ), भैंस, वृक (भेड़िया), बन्दर, गवय, तेंदुआ, व्याघ्र, शृगाल, रीछ, भालू, मुर्गा, कोयल, तोता, कबूतर, राजहंस, कोरंड काक, क्रौंच और कंजक तथा और भी तिर्यञ्च होते हैं ॥ ३८९-३९० ॥ १६ ब चउरंगस्ससंठाणं. २ ब किर ण ण सका. . ३ द बणयकंदण. ५व संजुदा. ६ ब वग्घसिग्घालस्सभल्ला, ७ द किंजक, बकिजक ४६ प संगूढा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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