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________________ १९०] तिलोयपण्णत्ती [४. ३७२ दादूण केहदाण पत्तविसेसेसु के वि दाणाणं । अणुमोदंणेण तिरिया भोगखिदीए वि जायंति ॥ ३७२ गहिदणं जिणलिंग संजमसम्मत्तभावपरिचत्ता । मायाचारपयट्टा चारित्तं णासयंति जे पावा ॥ ३७३ दादूण कुलिंगीणं णाणादाणाणि जे जरा मुद्धा। तव्वेसंधरा केई भोगमहीए हुवंति ते तिरिया ॥ ३७४ भोगजणरतिरियाणं णवमासपमाणआउअवसेसे । ताण हुवंति गब्भा णासे कालम्मि जायति ॥ ३७५ पुण्णमि य गवमासे भूसयणे सोविदूण जुगलाई । गम्भादो जुगलेसु णिकतेसु मरंति तक्कालं ॥ ३७६ छिक्केण मरदि पुंसो जिंभारंभेण कामिणी दोण्हं । सारदमेघ व तणू आमूलादो विलीएदि ॥ ३७७ भावणवेंतरजोइससुरेसु जायंति मिच्छभावजुदा । सोहम्मदुगे भोगजणरतिरिया सम्मभावजुदा ॥ ३७८ जादाण भोगभूवे सयणोवरि बालयाण सुत्ताणं । णियअंगुटुयलिहणे गच्छंते तिण्णि दिवसाणि ॥ ३७९ वइसणअस्थिरगमणं थिरगमणकलागुणेण पत्तेकं । तारुण्णेणं सम्मत्तगहणपाउग्ग तिदिणाई॥३८० कोई पात्रविशेषोंको दान देकर और कोई दानोंकी अनुमोदना करनेसे तिर्यंच भी भोगभूमिमें उत्पन्न होते हैं ॥ ३७२ ॥ __ जो पापी जिनलिंगको ( मुनिव्रतको ) ग्रहण करके संयम एवं सम्यक्त्वभावको छोड़ देते हैं और पश्चात् मायाचारमें प्रवृत्त होकर चारित्रको नष्ट करते हैं; तथा जो कोई मूर्ख मनुष्य कुलिंगियोंको नाना प्रकारके दान देते हैं या उनके भेषको धारण करते हैं, वे भोगभूमिमें तिर्यच होते हैं । ३७३.३७४ ॥ ___ भोगभूमिके मनुष्य और तिर्यश्चोंकी नौ मास आयु शेष रहनेपर उनके गर्भ रहता है, और नाशकाल अर्थात् मृत्युका समय आनेपर ( उनके युगल बालक-बालिका ) जन्म लेते हैं ॥ ३७५ ॥ नव मासके पूर्ण होनेपर नर-नारीयुगल भूशय्यापर सोकर गर्भसे युगलके निकलनेपर तत्काल ही मरणको प्राप्त होते ह ॥ ३७६ ॥ ____पुरुष छींकसे और स्त्री जृम्भाके ( जिंभाईके ) आनेसे मृत्युको प्राप्त होती है । उन दोनोंके शरीर शरत्कालीन मेघके समान आमूल विलीन हो जाते हैं ।। ३७७ ॥ - मृत्युके होनेपर भोगभूमिज मिथ्यादृष्टि मनुष्य-तिथंच भवनवासी, व्यंतर और ज्योतिषी देवोंमें, तथा सम्यग्दृष्टि मनुष्य-तिर्यञ्च सौधर्मयुगलमें उत्पन्न होते हैं ॥ ३७८ ॥ ___भोगभूमिमें उत्पन्न हुए बालकोंके शय्यापर सोते हुए अपने अंगूठेके चूसनेमें तीन दिन व्यतीत होते हैं ।। ३७९॥ इसके पश्चात् उपवेशन ( बैठने ), अस्थिरगमन, स्थिरगमन, कलागुणोंकी प्राप्ति तारुण्य और सम्यग्दर्शनके ग्रहण करनेकी योग्यता, इनमेंसे क्रमशः प्रत्येक अवस्थामें उन बालकोंके तीन तीन दिन व्यतीत होते हैं ॥ ३८० ॥ . १द ब गरहिदूणं. २ द गुलिंगीणं. ३ द व तं वेस', ४ द ब पुवाम्म. ५ द ब णिकते सम्मरंति, ६ द ब सारंमेपुव्व. ७ द व पीइसण'. ८ व ता पुणेण. ९ द. व. पाउग्गठिदिणाई. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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