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चउत्थो महाधियारो
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'गेवज' कण्णपुरा पुरिसाणं होंति सोलसाभरणं । चोइस इत्थीआणं छुरियाकरवालहीणाई। ३२ . कैडयकडिसुत्तणेउरतिरीटपालंबसुत्तमुद्दीओ । हारा कुंडलमउलट्टहारचूडामणी वि गेविजा ॥ ३१५ अंगदछरिया खग्गा पुरिसाणं होति सोलसाभरणं । चोइस इत्थीण तहा कुरियाखागेहि परिहीणा ॥३१४
पाठान्तरम् । भोगमहीए सब्वे जायते मिच्छभावसंजुत्ता। मंदकसाया मणुवा पेसुण्णासूयदग्वपरिहीणा ॥३६५ . वजिदमंसाहारा मधुमज्जोदुंबरेहिं परिचत्ता । सच्चजुदा मदरहिदा वारियपरदारपरिहीणा ॥३६६ गुणधरगुणेसु रत्तो जिणपूर्ज जे कुणंति परवसतो। उववासतणुसरीरा अज्जवपहुदीहिं संपण्णा ॥३६७ भाहारदाणणिरदा जदीसु वरविविहजोगजुत्तेसुं । विमलतरसंजमेसु य विमुक्कगंथेसु भत्तीए ॥३६८ पुव्वं बद्धणराऊ पच्छा तित्थयरपादमूलम्मि । पाविदखाइयसम्मा जायते केइ भोगभूमीए ॥३६९) एवं मिच्छाइट्ठी णिग्गंथाणं जदीण दाई । दादूण पुण्णपाके भोगमही केइ जायंति ॥ ३७० आहाराभयदाणं विविहोसहपोत्थयादिदाणं च । सेसे णाणोयरणं दादणं भोगभूमि जायते ॥३७॥
आभरण पुरुषोंके होते हैं । इनमेंसे छुरी तथा करवालसे रहित शेष चौदह आभरण स्त्रियोंके होते हैं ॥ ३६१-३६२ ॥
कडो, कटिसूत्र, नूपुरै, किरीट, प्रालम्ब, सूत्र, मुद्रिका, हार, कुण्डले, मुकुट, अर्द्धहोर, चूडामणि, अवेय', अंगर्दै, छुरी" और तलवार, ये सोलह आभरण पुरुषोंके, तथा छरी और तलवारसे रहित शेष चौदह आभरण स्त्रियोंके होते हैं ॥ ३६३-३६४ ॥
पाठांतर । भोगभूमिमें वे सब जीव उत्पन्न होते हैं जो मिथ्यात्वभावसे युक्त होते हुए भी, मंदकषायी हैं, पैशून्य एवं असूयादि द्रव्योंसे रहित हैं, मांसाहारके त्यागी हैं, मधु मद्य और उदुम्बर फलोंके भी त्यागी हैं, सत्यवादी हैं, अभिमानसे रहित हैं, वेश्या और परस्त्रीके त्यागी हैं, गुणियोंके गुणोंमें अनुरक्त हैं, पराधीन होकर जिनपूजा करते हैं, उपवाससे शरीरको कृश करनेवाले हैं, आर्जवादिसे संपन्न हैं; तथा उत्तम एवं विविध प्रकारके योगोंसे युक्त, अत्यन्त निर्मल संयमके धारक, और परिग्रहसे रहित, ऐसे यतियोंको भक्तिसे आहारदान देनेमें तत्पर हैं ॥ ३६५-३६८ ॥
जिन्होंने पूर्वमें मनुष्य आयुको बांधलिया है, और पश्चात् तीर्थकरके पादमूलमें क्षायिक सम्यग्दर्शन प्राप्त किया है, ऐसे कितने ही सम्यग्दृष्टि पुरुष भी भोगभूमिमें उत्पन्न होते हैं ॥ ३६९॥
इसप्रकार कितने ही मिथ्यादृष्टि मनुष्य निग्रंथ यतियोंको दानादि देकर पुण्यका उदय आनेपर भोगभूमिमें उत्पन्न होते हैं ॥ ३७० ॥
शेष कितने ही मनुष्य आहारदान, अभयदान, विविध प्रकारकी औषध तथा ज्ञानके उपकरण पुस्तकादिके दानको देकर भोगभूमिमें उत्पन्न होते हैं ॥ ३७१ ॥
१ व गेवजा, २ दर कडिय. ३ ३ परिचित्ता. ४६ व सत्यजुदा. ५ दब रतो. ६वदीगाई.
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