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________________ -४. ३०९] चउत्थो महाधियारो १७९ (वयण . एत्थ उक्कस्ससंखेज्जयजाणणिमित्तं जंबूदीववित्थारं सहस्सजायणउब्वेधपमाणचत्तारिसराधया। कादब्वा । सलागा पडिसलागा महासलागा एदे तिणि वि अवढिदा चउत्थो अणवट्टिदो। एदे सम्वे पण्णाए । ठविदा । एत्थ चउत्थसरावयअब्भंतरे दुवे सरिसवे त्थुदे तं जहणं संखेजयं जादं । एदं पढमवियप्पं . तिणि सरिसवे च्छुद्धे अजहण्णमणुक्कस्ससंखेजयं। एवं सरावएं पुण्णे' एदमुवरि मज्झिमवियप्पं । पुणो . भरिदसरावया देशो वा दाणभो वा हत्थे घेत्तूण दीवे समुद्दे एक्ककं सरिसवं देउँ। सो णिट्ठिदो तकाले ५ सलायमभंतरे एगसरिसमो च्छुद्धो । जम्हि सलाया समत्ता तम्हि सरावओ वड्ढावेयव्यो । तं भरिदूण हत्थे घेत्तूण दीवे समुद्दे णिट्ठिदन्वा । जम्हि णिट्ठिदं तम्हि सरावयं वडावेयव्वं । सलायसरावए सरिसवे च्छुद्धे एदा सलायसरावया पुण्णी, पडिसलायसरावया पुण्णी, महासलायसवयो पुण्णो । जह दीवसमुद्दे तिण्णि सरावया पुण्णी तस्संखेज़दीवसमुद्दवित्थरेण सहस्सजोयणगाण ( सरावये वड्डाविदे ) सरिसवं भरिदे वचन यहां उत्कृष्ट संख्यातके जाननेके निमित्त जम्बूद्वीपके समान विस्तारवाले ( एक लाख योजन) और एक हजार योजनप्रमाण गहरे चार गड़े करना चाहिये । इनमें शलाका, प्रतिशलाका और महाशलाका, ये तीन गड़े अवस्थित और चौथा अनवस्थित है। ये सब गड़े बुद्धिसे स्थापित किये गये हैं । इनमेंसे चौथे कुण्डके भीतर दो सरसोंके डालनेपर वह जघन्य संख्यात होता है । यह संख्यातका प्रथम विकल्प है। तीन सरसोंके डालनेपर अजघन्यानुत्कृष्ट (मध्यम ) संख्यात होता है। इसीप्रकार एक एक सरसोंके डालनेपर उस कुण्डके पूर्ण होनेतक यह तीनसे ऊपर सब मध्यम संख्यातके विकल्प होते हैं। पुनः इस सरसोंसे भरे हुए कुण्डमेंसे देव अथवा दानव हाथमें ग्रहण करके क्रमसे द्वीप और समुद्रमें एक एक सरसों देता जाय । इसप्रकार जब वह कुण्ड समाप्त हुआ तब उस समय शलाका कुण्डके भीतर एक सरसों.डाला । जहांपर प्रथम कुण्डकी शलाकायें समाप्त हुई हों, उस द्वीप या समुद्रकी सूचीप्रमाण उस अनवस्थाकुण्डको बढा दे। पुनः उसे सरसोंसे भरकर पहिलेके ही समान हाथमें ग्रहण करके क्रमसे आगेके द्वीप और समुद्रमें एक एक सरसों डालकर उन्हें पूरा कर दे । जिस द्वीप या समुद्रमें इस कुण्डके सरसों पूर्ण हो जावें उसकी सूचीके बराबर फिरसे उक्त कुण्डको बढावे और शलाका कुण्डमें एक अन्य सरसों डाले। (इसप्रकार सरसों डालते डालते जब शलाका कुण्ड भरजावे तब एक सरसों प्रतिशलाका कुण्डमें डालना चाहिये । उपर्युक्त रीतिसे जब प्रतिशलाका कुण्ड भी भरजाय तब महाशलाका कुण्डमें एक सरसों डाले । इसप्रकार सरसों डालते डालते ) शलाका कुंड पूर्ण होगये, प्रतिशलाका कुंड पूर्ण होगये, और महाशलाका कुंड पूर्ण होगया। जिस द्वीप या समुद्रमें शलाका, प्रतिशलाका और महाशलाका ये तीनों कुण्ड भरजावें उतने संख्यात द्वीपसमुद्रोंके विस्ताररूप और एक हजार योजन गहरे गड़ेको सरसोंसे भरदेनेपर उत्कृष्ट संख्यातका १ द व उवेद'. २ द ब सरावयं. ३ द ब त्थुदे. ४ द सरावयो. ५ द ब पुण्णो. ६ द ब देय, ७ द बत्थूदो. ८ बसम्मत्ता. ९दव सरावउ वद्धारयंतु. १० द व सरिसवत्थूदे. ११ द ब पुण्णो. १२°सरावया. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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