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________________ १७६] तिलोयपण्णत्ती [४.२८४ समयावलिउस्लासा पाणा थोवा य आदिया भेदा। ववहारकालणामा णिहिट्टा वीयराएहि ॥ २८४ परमाणुस्स णियट्टिदगयणपदेसस्सदिक्कमणमेत्तो। जो कालो अविभागी होदि पुढे समयणामा सो ॥२८५ होंति हु असंखसमया आवलिणामो तहेव उस्सासो । संखेज्जावलिणिवहो सो चिय पाणोति विक्खादो ॥ २८६ ।१। । सत्तुस्सासो थोवं सत्तत्थोवा लवित्ति णादवो । सत्तत्तरिदलिदलवा णाली बे णालिया मुहुरतं च ॥ २८७ . ७।७।७७ समऊणेक्कमुहुत्तं भिण्णमुहुत्तं मुहत्तया तीसं । दिवसो पण्णरसेहि दिवसेहिं एकपक्खो हु॥२८८ दो पक्खेहिं मासो मासदुगेणं उडू उडुत्तिदयं । अयणं अयणदुगेणं वरिसो पंचेहि वच्छरेहिं जुग ।। २८९ माघादी होति उड सिसिरवसंता णिदाघपाउसया। सरओ हेमंता वि य णामाई ताण जाणिज॥२९०) बेणि जुगा दस वरिसा ते दसगुणिदा हवेदि वाससदं । एदेस्सिं दसगुणिदे वालसहस्सं वियाणेहि ॥ २९१ समय, आवलि, उच्छ्वास, प्राण और स्तोक, इत्यादिक भेदोंको वीतराग भगवानने व्यवहार कालके नामसे निर्दिष्ट किया है ॥ २८४ ॥ पुद्गलपरमाणुका निकटमें स्थित आकाशप्रदेशके अतिक्रमणप्रमाण जो अविभागी काल है वही 'समय ' नामसे प्रसिद्ध है ॥ २८५ ॥ असंख्यात समयोंकी आवलि और इसीप्रकार संख्यात आवलियोंके समूहरूप उच्छ्वास होता है। यही उच्छ्वासकाल 'प्राण' इस नामसे प्रसिद्ध है ॥ २८६ ॥ सात उच्छ्वासोंका एक स्तोक, और सात स्तोकोंका एक लव जानना चाहिये । सतत्तरके आधे अर्थात् साढ़े अडतीस लवोंकी एक नाली और दो नालियोंका एक मुहूर्त होता है ॥ २८७ ॥ ____७ उ.= १ स्तोक । ७ स्तोक = १ लव । ३८३ लव = १ नाली । २ नाली १ मुहूर्त। समय कम एक मुहूर्तको भिन्नमुहूर्त कहते हैं। तीस मुहूर्तका एक दिन और पन्द्रह दिनोंका एक पक्ष होता है ॥ २८८ ॥ दो पक्षोंका एक मास, दो मासोंकी एक ऋतु, तीन ऋतुओंका एक अयन, दो अयनोंका वर्ष, और पांच वर्षोंका एक युग होता है ॥ २८९ ॥ माघ माससे लेकर जो ऋतुएँ होती हैं उनके नाम शिशिर, वसन्त, निदाघ (ग्रीष्म ), प्रावृष (वर्षा ), शरद और हेमन्त, इसप्रकार जानना चाहिये ॥ २९० ।। दो युगोंके दश वर्ष होते हैं; इन दश वर्षोंको दशसे गुणा करनेपर शतवर्ष, और शतवर्षको दशसे गुणा करनेपर सहस्रवर्ष जानना चाहिये ॥ २९१ ॥ १ब भेदो. २दब कमेणंतो. ३दब पंणो. ४द थोवायआवलित्ति, ब थोवायलिचि. ५ द ब लया. ६ द ब ।।५।।. ७ द ब एकपक्खा . ८ ब एदेस्सि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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