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तिलोयपण्णत्ती
[ ४. २६५
तोरणउच्छेहादी गंगाए वण्णिदा जहा पुवं । तस्सवा सिंधूए वत्तव्वा णिउणबुद्धीहि ॥ २६५ गंगासिंधुणईहि वेयडणगेण भरहखेत्तम्मि । छक्खंडं संजादं ताण विभागं परूवेमो ॥ २६६ उत्तरदक्खिणभरहे खंडाणं तिणि होति पत्तेकं । दक्षिणतियखंडेसुं अज्जाखंडो त्ति मज्झिम्मो ॥ २६७ सेसा वि पंच खंडा णामेणं होंति मेच्छखंड त्ति । उत्तरतियखंडेसुं मज्झिमखंडस्स बहुमझे ॥ २६८ चक्कीण माणमलणो णाणाचकहरणामसंछण्णो । मूलोवरिमज्झेसुं रयणमओ होदि वसहगिरी ॥ २६९ जोयणसयमुग्विद्धो पणुवीसं जोयणाणि अवगाढो । एक्कसयमूलरुंदो पण्णत्तरि मज्झवित्थारो॥ २७०
१००। २५ । १००। ७५ । पण्णासजोयणाई विस्थारो होदि तस्स सिहरम्मि । मूलोवरिमज्झेसुं चेटुंते वेदिवणसंडा ॥२७॥ चउतोरणहिँ जुत्ता पोक्खरिणीवाविकूवपरिपुण्णा । वजिदणीलमरगयकक्केयणपउमरायमया ॥ २७२ होंति हु वरपासादा विचित्तविण्णासमणहरायारा । दिप्तरयणदीवा वसहगिरिंदस्स सिहरम्मि ॥ २७३ वररयणकंचणमया जिणभवणा विविहसुंदरायारा । चेटुंति वण्णणाओ पुच्वं पिव होंति सम्वाभो ॥ २७४
जिसप्रकार पहिले गंगा नदीके वर्णनमें तोरणोंकी उंचाई आदिक बतलाई जाचुकी है, उसीप्रकार बुद्धिमानोंको उन सबका कथन यहांपर भी करना चाहिये ॥ २६५॥
___ गंगा व सिन्धु नदी और विजयार्द्ध पर्वतसे भरत क्षेत्रके जो छह खण्ड होगये हैं, उनके विभागको कहते हैं ॥ २६६ ॥
उत्तर और दक्षिण भरत क्षेत्रमेंसे प्रत्येकके तीन तीन खण्ड हैं। इनमेंसे दक्षिण भरतके तीन खण्डोंमेंसे मध्यका आर्यखण्ड है ॥ २६७ ॥
शेष पांचों ही खण्ड म्लेच्छखण्ड नामसे प्रसिद्ध हैं। उत्तर भरतके तीन खण्डोंमेंसे मध्यम खण्डके बहुमध्यभागमें चक्रवर्तियोंके मानका मर्दन करनेवाला, नाना चक्रवर्तियोंके नामोंसे व्याप्त; और मूलमें, ऊपर एवं मध्यमें रत्नोंसे निर्मित; ऐसा वृषभगिरि है ॥ २६८-२६९ ॥ . . यह पर्वत सौ योजन ऊंचा, पच्चीस योजनप्रमाण नीवसे युक्त, मूलमें सौ योजन और मध्यमें पचहत्तर योजन विस्तारवाला है ।। २७० ॥ ऊं. १००, अव. २५, मू . वि. १००, म. वि. ७५।
उक्त पर्वतका विस्तार शिखरपर पचास योजनमात्र है। इसके मूलमें, ऊपर और मध्यमें वेदी और वनखंड स्थित हैं ॥ २७१ ॥ ५० ।
वृषभ गिरीन्द्रके शिखरपर चार तोरणोंसे सहित, पुष्करिणी और कूपोंसे परिपूर्ण; वज्र, इन्द्रनील, मरकत, कर्केतन और पद्मराग, इन मणिविशेषोंसे निर्मित; विचित्र रचनाओंसे मनोहर आकृतिको धारण करनेवाले, और देदीप्यमान रत्नोंके दीपकोंसे संयुक्त, ऐसे उत्तम भवन हैं ॥ २७२-२७३ ॥
वहांपर उत्तम रत्न एवं सुवर्णसे निर्मित विविध प्रकारके सुन्दर आकारोंवाले जिनभवन स्थित हैं। इनका सब वर्णन पहिलेके ही समान है ॥ २७४ ॥
५ द ब भरहो.
१ द उस्सेहादी. २ द ब सस्सव्वं. ३ द ब गईणं. ४ द णगे भरह'. ६ द ब मझिवा. ७ द मेच्छखंडम्मि. ८ द ब जुत्तो. ९द पोक्खरणी .
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