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-४. २६४ ]
चउत्थो महाधियारो
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बे कोसा वित्थिण्णो 'तेत्तियमेत्तोदएण संपुण्णो। वियसंतपउमकुसुमोवमाणसंठाणसोहिल्लो ॥ २५५ इगिकोसोदयरुंदो रयणमई कण्णिया य अदिरम्मौ । तीए उवरि विचित्तो पासादो होदि रमणिज्जो ॥ २५६ वररयणकंचणमओ फुरंतकिरणो पणासितमोहो । सो उत्तुंगत्तोरणदुवारसुदेरसुट्टसोहिल्लो ॥ २५७ (तस्सि णिलए णिवसइ अवणा णामेण वेंतरा देवी । एक्कपलिदोवमाऊ णिरुवमलावण्णपरिपुण्णा ॥ २५० पउमदहादो पणुसयमेत्ताई जायणाई गंतूर्ण । सिंधूकडमपत्ता दुकोसमेत्तेण दक्षिणावलिदा ॥ २५९ उभयतडवेदिसहिदा उववणसंडेहिं सुट्ट सोहिल्ला । गंग व्व पडइ सिंधू जिब्भादो सिंधुकूडउवरिम्म ॥ २६० (कुंडं दीवो सेलो भवणं भवणस्स उवरिमं कूडं । तस्सि जिणपडिमाओ सव्वं पुव्वं व वत्तव्वं ॥ २६१
णवरि विसेसो एसो सिंधूकडम्मि सिंधुदेवि त्ति । बहुपरिवारहिं जुदा उवभुंजदि विविहसोक्खाणि ॥ २६२ । गंगाणई व सिंधू विजयगुहाय उत्तरदुवारे । पविसिय वेदीजुत्ता दक्खिणदारेण णिस्सरदि ॥ २६३
दक्खिणभरहस्सद्धं पाविय पच्छिमपभासतित्थम्मि । चोइससहस्ससरियापरिवारा पविसए उवहिं ॥ २६४)
उपर्युक्त कमलाकार कूट दो कोस विस्तीर्ण और इतनी ही उंचाईसे परिपूर्ण एवं विकसित कमलपुष्पके सदृश आकारसे शोभायमान है ॥ २५५ ॥ - उसकी एक कोस ऊंची और उतनी ही विस्तृत रमणीय रत्नमयी कर्णिका है। इस कर्णिकाके ऊपर रमणीय विचित्र प्रासाद है ॥ २५६ ॥
यह भवन उत्तम रत्न और सुवर्णसे निर्मित, प्रकाशमान किरणोंसे युक्त, अंधकारसमूहको नष्ट करनेवाला और उन्नत तोरणद्वारोंके सौन्दर्यसे भलेप्रकार शोभायमान है ॥ २५७ ॥
उस भवन में एक पल्योपम आयुवाली और अनुपम लावण्यसे परिपूर्ण अवना (लवणा) नामकी व्यन्तर देवी रहती है ॥ २५८ ॥
पद्म द्रहसे पांचसौ योजनमात्र आगे चलकर और सिन्धुकूटको प्राप्त न होकर उससे दो कोस पहिले ही दक्षिणकी ओर मुड़ती हुई दोनों तटोंपर स्थित वेदिकासे सहित और उपवनखंडोंसे भलेप्रकार शोभायमान सिन्धु नदी भी गंगा नदीके समान ही जिबिकासे सिन्धुकूटके ऊपर गिरती है ।। २५९-२६० ॥
कुण्ड, द्वीप, पर्वत, भवन, भवनके ऊपर कूट और उसके ऊपर जिनप्रतिमायें, इन सबका पहिलेके समान ही कथन करना चाहिये ॥ २६१ ॥
विशेषता केवल यह है कि सिन्धुकूटपर बहुत परिवारसे युक्त सिन्धुदेवी विविधप्रकारके सुखोंका उपभोग करती है ॥ २६२ ॥
गंगा नदीके समान सिन्धु नदी भी विजयार्द्धकी गुफाके उत्तर द्वारमेंसे प्रवेश करके वेदीसहित दक्षिण द्वारसे निकलती है ॥ २६३ ॥
पश्चात् दक्षिण भरतके अर्द्ध भागको प्राप्त करके चौदह हजार परिवारनदियोंसे सहित होती हुई पश्चिम प्रभास तीर्थपर समुद्रमें प्रवेश करती है ॥ २६४ ॥
१ ब तत्तिय". २ द ब कोसं बे रुंदा. ३ द ब कण्णिया य धीरम्मा. ४ द ब पणासिअंतमो. ५६ व सुंदार, ६ द ब सोक्खाणं.
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