SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२] तिलोयपण्णत्ती [४.२४६ बासट्रि जोयणाई दोणि य कोसाणि वित्थरा गंगा। पण कोसा गाढतं' उवहिपदेसप्पवेसम्मि ॥ २४६ दीवजगदीय पासे णइबिलवंदणम्मि तोरणं दिव्वं । विविहवररयणखजिदं खंभट्ठियसालभंजियाणिवहं॥ २४७ थभाणं उच्छेहो तेणउदी जोयणाणि तिय कोसा। एदाण अंतराल बासट्ठी जोयणा दुवे कोसा॥२४८ ९३ । को३ । ६२ को २। छत्तत्तयादिसहिदा जिणिदपडिमा य तोरणुवरािम्म । चेटुंति सासदाभो सुमरणमेत्तण दुरिदहणा ॥ २४९ वरतोरणस्स उवरि पासादा हॉति रयणकणयमया । चउतोरणवेदिजुदा वजकवाडुजलदुवारा ॥ २५० एदेसु मंदिरेसु देवीओ दिक्कुमारिणामाओ। णाणाविहपरिवारा वेतरियाओ विरायति ॥ २५१ . पउमदहीदो पच्छिमदारेणं णिस्सरेदि सिंधुणदी। तटाणवासादी तोरणपहुदी य सुरणदीसरिसी ॥ २५२ गंतूण थोवभूमि सिंधूमज्झम्मि होदि वरकडो । वियसियकमलायारो रम्मो वेरुलियणालजुदो ॥ २५३ तस्स दलो भइरत्ती दीहजुदा होंति कोसदलमत्तं । उच्छेहो सलिलादो उवरिपएसम्मि इगिकोसो ॥ २५४ उदधिप्रदेशमें प्रवेश करते समय गंगाका विस्तार बासठ योजन दो कोस, और गहराई पांच कोस हो गई है ॥ २४६ ॥ द्वीपकी वेदीके पास नदीबिलके मुखपर अनेक प्रकारके उत्तमोत्तम रत्नोंसे खचित और खम्भोंपर स्थित पुत्तलिकासमूहसे युक्त दिव्य तोरण है ॥ २४७ ॥ स्तम्भोंकी उंचाई तेरानबै योजन और तीन कोस, तथा इनका अन्तराल बासठ योजन और दो कोस है ॥ २४८ ॥ उंचाई यो. ९३, को. ३, अंतराल यो. ६२ को. २ । - तोरणोंके ऊपर तीन छत्रादिसे सहित, शाश्वत और स्मरणमात्रसे ही पापको नष्ट करनेवाली, ऐसी जिनेन्द्रप्रतिमायें स्थित हैं ॥ २४९ ॥ उत्कृष्ट तोरणके ऊपर चार तोरण और वेदीसे युक्त तथा वज्रमय कपाटोंसे उज्ज्वल द्वारवाले रत्न एवं सुवर्णमय भवन हैं ॥ २५० ॥ इन भवनोंमें नानाप्रकारके परिवारसे युक्त दिवकुमारी नामक व्यन्तरिणी देवियां विराजमान हैं ॥ २५१ ॥ पद्म द्रहके पश्चिमद्वारसे सिन्धु नदी निकलती है । इसके स्थानके विस्तार आदिक और तोरणादिका कथन गंगा नदीके सदृश है ॥ २५२ ॥ कुछ थोड़ी दूर चलकर सिन्धु नदीके बीचमें विकसित कमलके आकार, रमणीय और वैडूर्यमणिमय नालसे युक्त एक उत्तम कूट है ॥ २५३ ॥ ___ उसके पत्ते अत्यंत लाल और आधे कोसप्रमाण लम्बाईसे युक्त है । जलके उपरिम भागमें इसकी उंचाई एक कोस है ।। २५४ ॥ १द आगाढत्तं. २ ब णइविदवद, ३ द दुरेकोसो, ब पुरेकोसो. ४ द ब सासभाओ. ५ द ब चौतोरण: ६ द दहादु. ७ द ब तट्ठाणवासरादी. ८ द ब पहुदी सुरणदिसरिच्छा. ९ द बतला. १० ब अहरिता, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy