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________________ १६६ ] तिलोयपण्णत्ती एकसहस्लट्ठसया बाणउदी जोयणाणि भागा वि । पण्णरसद्धं एसा भरहक्खेत्तस्स पस्लभुजा ॥ १९४ १८९२ । १५१ २ १९ हिमवंताचलमज्झे पमदहो पुब्वपच्छिमायामी । पणसयजोयणरुंदी तद्गुणायामसंपण्णो ॥ १९५ ५०० | १००० । दसजोयणावगाढो चउतोरणवेदियाहिं संजुत्तो । तस्सि पुव्वदिसाए णिग्गच्छदि निम्मगा गंगा ॥ १९६ जोयक्ककोसा णिग्गदठाणम्मि होदि वित्थारो । गंगा तरंगिणी उच्छेहो' को सदलमेत्तो ॥ १९७ गंगाईए णिग्गमठाणे चिट्ठेदि तोरणो दिव्वो । णवजोयणाणि तुंगो दिवङ्ककोसादिरित्तो य ॥ १९८ ९।३। चामरघंटा किंकिणिवंदणमालास एहि कयसोहा । भिंगार कलस दप्पणपूयणदव्वेहिं रमणिजा ॥ १९९ रयणमयथं भजो जिद विचित्तवरसालभंजियारम्माँ । वजिंदणीलमरगय कक्केय णपउमरायजुदा || २०० ससिकंत सूरकंतप्पमुह मर्जखेहि णासियतमोघा । लंबते कणयदामा अणाइणिहणा अणुवमाणा ॥ २०१ छत्तत्तयादिसहिदा वररयणमईओ फुरिदकिरिणोघा । सुरखेयरमहिदाओ जिणपडिमा तोरणुवरि णिवसंति ॥ २०२ एक हजार आठसौ बान योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमेंसे पन्द्रहके आधे अर्थात् साढ़े सात भागप्रमाण यह भरत क्षेत्रकी पार्श्वभुजा है ॥ १९४ ॥ १८९२ । हिमवान् पर्वतके मध्य में पूर्व-पश्चिम लंबा, पांचसौ योजन विस्तारसे सहित, और इससे दुगुणा अर्थात् एक हजार योजन लंबा पद्म द्रह है ॥ १९५ ॥ विष्कंभ ५००, आयाम १००० । यह द्रह दश योजन गहरा और चार तोरण एवं वेदिकाओंसे संयुक्त है । इसकी पूर्व दिशासे गंगा नदी निकलती है ॥ १९६ ॥ उद्गमस्थान में गंगा नदीका विस्तार छह योजन एक कोस और ऊंचाई आधा कोसमात्र है ॥ १९७ ॥ [ ४. १९४ गंगा नदीके निर्गमन स्थान में नौ योजन और डेढ़ कोस ऊंचा दिव्य तोरण है ॥ १९८ ॥ ९३ ॥ इस तोरणपर चामर, घंटा, किंकिणी ( क्षुद्र घंटिका ) और सैकड़ों वन्दनमालाओं से शोभायमान; झारी, कलश, दर्पण तथा पूजाद्रव्यों से रमणीय; रत्नमय स्तम्भों पर नियोजित विचित्र और उत्तम पुत्तलिकाओं से सुन्दर, वज्र, इन्द्रनील, मरकत, कर्केतन एवं पद्मराग मणियोंसे युक्त; चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त प्रमुख मणियोंकी किरणोंसे अन्धकारसमूहको नष्ट करनेवाली; लटकती हुई सुवर्णमालाओं से सुशोभित, अनादिनिधन, अनुपम, छत्रत्रयादिसे सहित, उत्तम रत्नमय, प्रकाशमान किरणों के समूहसे युक्त और देव एवं विद्याधरोंसे पूजित, ऐसी जिनप्रतिमायें विराजमान हैं ॥। १९९-२०२ ॥ १ द १५ ।. ६ द ब मालास इ. Jain Education International २ द पवमदहो. ३ द तरंगणीए. ४ द उच्छेदो, ब उच्चेदो. ७ द ब सालभद्दियारम्भो. ८ द ब मईखेहि. ९ द व लंबंद. For Private & Personal Use Only ५ द तुंगा. www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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