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-१. १९३] चउत्यो महाधियारो
• [ १६५ चत्तारि सयाणि तहा पणुसीदीजोयणहिँ जुत्ताई । सत्तत्तीसद्वकला परिमाणं चूलियाए इमं ॥१४८
जेट्टम्मि चावपट्टे सोहेज कणिटुवावपर्ट ति । सेसदलं पस्सभुजी हवेदि वरिसम्मि सेले य॥ १८९ चत्तारि सयाणि तहा अडसीदीजोयणेहिं जुत्ताणि । तेत्तीसद्धकलाओ गिरिस्स पुग्वावरम्मि पस्सभुजा ॥ १९०
४८८। ३३ ।
'चोइससहस्सजोयणचउस्सया एक्कसत्तरीजुत्ता । पंचकलाओ एसो जीवा भरहस्स उत्तरे भाएं॥ १९१
१४४७१ । ५
भरहस्स चावपटुं पंचसयावहियचउदससहस्सा । अडवीस जोयणाई हुवंति एकारस कलामो ॥ १९२
१४५२८।११
जोयणसहस्समेकं भट्ठसया पंचहत्तरीजुत्ता । तेरसमद्धकलाओ भरहखिदीचूलिया एसा ॥ १९३
१८७५। १३
विजयार्द्धकी चूलिकाका प्रमाण चारसौ पचासी योजन और एक योजनके उन्नीस भागों से सैंतीसकी आधे अर्थात् साढे अठारह भाग है ॥ १८८ ॥ १८५३४।
उत्कृष्ट चापपृष्ठमेंसे लघु चापपृष्ठ को घटाकर शेषको आधा करनेपर क्षेत्र और पर्वतमें पार्श्वभुजाका प्रमाण निकलता है ।। १८९॥ १०७४३३५ - ९७६६१ = ४८८३४ विज. पा. मु.।
विजया के पूर्व-पश्चिममें पार्श्वभुजाका प्रमाण चारसौ अठासी योजन और एक योजनके उन्नीस भागों से तेतीसके आधे अर्थात् साढे सोलह भाग है ॥ १९० ॥ ४८८३३ ।
भरत क्षेत्रके उत्तरभागमें जीवाका प्रमाण चौदह हजार चारसौ इकहत्तर योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमेंसे पांच भाग है ॥ १९१ ॥ १४४७१११३।।
भरत क्षेत्रका धनुपृष्ठ चौदह हजार पांचसौ अट्ठाईस योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमेंसे ग्यारह भागप्रमाण है ॥ १९२ ॥ १४५२८३३।।
____ यह भरत क्षेत्रकी चूलिका एक हजार आठसौ पचहत्तर योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमेंसे तेरहके आधे अर्थात् साढ़े छह भागमात्र है ॥ १९३ ॥ १८७५३ है ।
१द व चूलियाइरिमं. २ द ३४, ब ३७ ।. ३ द बसेसद्दलपयसभुना. ४ द पदा समत्ता, बएदा समत्ता. ५ द व कलासा सेसे. ६ द उत्तरभाए. ७ द १३..
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